हिंदू नूतन वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं।
केदारनाथ का सुंदर आकृति आपके सामने प्रस्तुत है।
*गुरु का आदेश* एक शिष्य था समर्थ गुरु जी का जो भिक्षा लेने के लिए गांव में गया और घर-घर भिक्षा की मांग करने लगा। *समर्थ गुरु की जय ! भिक्षा देहिं....* *समर्थ गुरु की जय ! भिक्षा देहिं....* एक घर के भीतर से जोर से दरवाजा खुला ओर एक बड़ी-बड़ी दाढ़ी वाला तान्त्रिक बाहर निकला और चिल्लाते हुए बोला - मेरे दरवाजे पर आकर किसी दूसरे का गुणगान करता है। कौन है ये समर्थ?? शिष्य ने गर्व से कहा-- *मेरे गुरु... जो सर्व समर्थ है।* तांत्रिक ने सुना तो क्रोध में आकर बोला कि इतना दुःसाहस कि मेरे दरवाजे पर आकर किसी और का गुणगान करे .. तो देखता हूँ कितना सामर्थ्य है तेरे गुरु में ! *मेरा श्राप है कि तू कल का उगता सूरज नही देख पाएगा अर्थात् तेरी मृत्यु हो जाएगी।* शिष्य ने सुना तो देखता ही रह गया और आस-पास के भी गांव वाले कहने लगे कि इस तांत्रिक का दिया हुआ श्राप कभी भी व्यर्थ नही जाता.. बेचारा युवावस्था में ही अपनी जान गवा बैठा.... शिष्य उदास चेहरा लिए वापस आश्रम की ओर चल दिया और सोचते-सोचते जा रहा था कि आज मेरा अंतिम दिन है, लगता है मेरा समय खत्म हो गया है। आश्रम में जैसे ही पहुँचा। गुरुजी हँसते हुए बोले -- *ले आया भिक्षा?* बेचार शिष्य क्या बोले---! गुरुदेव हँसते हुए बोले कि भिक्षा ले आया। *शिष्य--* जी गुरुदेव! भिक्षा में मैं अपनी मौत ले आया हूँ ! और सारी घटना सुना दी और एक कोने में चुप-चाप बैठ गया। गुरुदेव बोले अच्छा चल भोजन कर ले। *शिष्य--* गुरुदेव! आप भोजन करने की बात कर रहे है और यहाँ मेरा प्राण सूख रहा है। भोजन तो दूर एक दाना भी मुँह में न जा पाएगा। *गुरुदेव बोले---* अभी तो पूरी रात बाकी है अभी से चिंता क्यों कर रहा है, चल ठीक है जैसी तुम्हारी इच्छा। ओर यह कहकर गुरुदेव भोजन करने चले गए। फिर सोने की बारी आई तब गुरुदेव शिष्य को बुलाकर आदेश किया - *हमारे चरण दबा दे!* शिष्य मायूस होकर बोला! जी गुरुदेव जो कुछ क्षण बचे है जीवन के, वे क्षण मैं आपकी सेवा कर ही प्राण त्याग करूँ यहिं अच्छा होगा। ओर फिर गुरुदेव के चरण दबाने की सेवा शुरू की। *गुरुदेव बोले--* चाहे जो भी हो जाय चरण छोड़ कर कहीं मत जाना । *शिष्य--* जी गुरुदेव कही नही जाऊँगा। *गुरुदेव ने अपने शब्दों को तीन बार दोहराया कि *चरण मत छोड़ना, चाहे जो हो जाए।* यह कह कर गुरुदेव सो गए। शिष्य पूरी भावना से चरण दबाने लगा। रात्रि का पहला पहर बीतने को था अब तांत्रिक अपनी श्राप को पूरा करने के लिए एक देवी को भेजा जो धन से सोने-चांदी से, हीरे-मोती से भरी थाली हाथ में लिए थी। शिष्य चरण दबा रहा था। तभी दरवाजे पर वो देवी प्रकट हुई और कहने लगी - कि इधर आओ ओर ये थाली ले लो। शिष्य भी बोला-- जी मुझे लेने में कोई परेशानी नही है लेकिन क्षमा करें! मैं वहाँ पर आकर नही ले सकता। अगर आपको देना ही है तो यहाँ पर आकर रख दीजिए। तो वह देवी कहने लगी कि-- नही !! नही!! तुम्हे यहाँ आना होगा। देखो कितना सारा माल है। शिष्य बोला-- नही। अगर देना है तो यही आकर रख दो। *तांत्रिक ने अपना पहला पासा असफल देख दूसरा पासा फेंका रात्रि का दूसरा पहर बीतने को था तब तांत्रिक ने भेजा....* शिष्य गुरु जी के चरण दबाने की सेवा कर रहा था तब रात्रि का दूसरा पहर बीता और तांत्रिक ने इस बार उस शिष्य की माँ का रूप बनाकर एक नारी को भेजा। शिष्य गुरु के चरण दबा रहा था तभी दरवाजे पर आवाज आई -- बेटा! तुम कैसे हो? शिष्य ने अपनी माँ को देखा तो सोचने लगा अच्छा हुआ जो माँ के दर्शन हो गए, मरते वक्त माँ से भी मिल ले। वह औरत जो माँ के रूप को धारण किये हुए थी बोली - आओ बेटा गले से लगा लो! बहुत दिन हो गए तुमसे मिले। शिष्य बोला-- क्षमा करना मां! लेकिन मैं वहाँ नही आ सकता क्योंकि अभी गुरुचरण की सेवा कर रहा हूँ। मुझे भी आपसे गले लगना है इसलिए आप यही आ कर बैठ जाओ। फिर उस औरत ने देखा कि चाल काम नही आ रहा है तो वापिस चली गई। रात्रि का तीसरा पहर बीता ओर इस बार तांत्रिक ने यमदूत रूप वाला राक्षस भेजा। राक्षस पहुँच कर उस शिष्य से बोला कि चल तुझे लेने आया हूँ तेरी मृत्यु आ गई है। उठ ओर चल... शिष्य भी झल्लाकर बोला-- काल हो या महाकाल मैं नही आने वाला ! अगर मेरी मृत्यु आई है तो यही आकर मेरे प्राण ले लो,लेकिन मैं गुरु के चरण नही छोडूंगा! फिर राक्षस भी उसका दृढ़। निश्चय देख कर वापिस चला गया। सुबह हुई चिड़ियां अपनी घोसले से निकलकर चिचिहाने लगी। सूरज भी उदय हो गया। गुरुदेव जी नींद से उठे और शिष्य से पूछा कि - सुबह हो गई क्या ? शिष्य बोला-- जी! गुरुदेव सुबह हो गई गुरुदेव - अरे! तुम्हारी तो मृत्यु होने वाली थी न, तुमने ही तो कहा था कि तांत्रिक का श्राप कभी व्यर्थ नही जाता। लेकिन तुम तो जीवित हो...!! गुरुदेव ने मुस्कराते हुए ऐसा बोला। शिष्य भी सोचते हुए कहने लगा - जी गुरुदेव, लग तो रहा हूँ कि जीवित ही हूँ। अब शिष्य को समझ में आई कि गुरुदेव ने क्यों कहा था कि --- *चाहे जो भी हो जाए चरण मत छोड़ना।* शिष्य गुरुदेव के चरण पकड़कर खूब रोने लगा बार बार मन ही मन यही सोच रहा था - *जिसके सिर उपर आप जैसे गुरु का हाथ हो तो उसे काल भी कुछ नही कर सकता है। *मतलब कि गुरु की आज्ञा पर जो शिष्य चलता है उससे तो स्वयं मौत भी आने से एक बार नही अनेक बार सोचती है।* *करता करें न कर सके, गुरु करे सो होय* *तीन-लोक,नौ खण्ड में गुरु से बड़ा न कोय* पूर्ण सद्गुरु में ही सामर्थ्य है कि वो प्रकृति के नियम को बदल सकते है जो ईश्वर भी नही बदल सकते, क्योंकि ईश्वर भी प्रकृति के नियम से बंधे होते है लेकिन पूर्ण सद्गुरु नही..!!
।। वृंदावन की होली ।।
🙏🙏 महाशिवरात्रि व्रत की कथा 🙏🙏 किसी समय वाराणसी के जंगल में एक भील रहता था। उसका नाम गुरुद्रुह था। वह जंगली जानवरों का शिकार कर अपना परिवार पालता था। एक बार शिवरात्रि पर वह शिकार करने वन में गया। उस दिन उसे दिनभर कोई शिकार नहीं मिला और रात भी हो गई। तभी उसे वन में एक झील दिखाई दी। उसने सोचा मैं यहीं पेड़ पर चढ़कर शिकार की राह देखता हूं। कोई न कोई प्राणी यहां पानी पीने आएगा। यह सोचकर वह पानी का बर्तन भरकर बिल्ववृक्ष पर चढ़ गया। उस वृक्ष के नीचे शिवलिंग स्थापित था। थोड़ी देर बाद वहां एक हिरनी आई। गुरुद्रुह ने जैसे ही हिरनी को मारने के लिए धनुष पर तीर चढ़ाया तो बिल्ववृक्ष के पत्ते और जल शिवलिंग पर गिरे। इस प्रकार रात के प्रथम प्रहर में अंजाने में ही उसके द्वारा शिवलिंग की पूजा हो गई। तभी हिरनी ने उसे देख लिया और उससे पूछा कि तुम क्या चाहते हो। वह बोला कि तुम्हें मारकर मैं अपने परिवार का पालन करूंगा। यह सुनकर हिरनी बोली कि मेरे बच्चे मेरी राह देख रहे होंगे। मैं उन्हें अपनी बहन को सौंपकर लौट आऊंगी। हिरनी के ऐसा कहने पर शिकारी ने उसे छोड़ दिया। थोड़ी देर बाद उस हिरनी की बहन उसे खोजते हुए झील के पास आ गई। शिकारी ने उसे देखकर पुन: अपने धनुष पर तीर चढ़ाया। इस बार भी रात के दूसरे प्रहर में बिल्ववृक्ष के पत्ते व जल शिवलिंग पर गिरे और शिवलिंग की पूजा हो गई। उस हिरनी ने भी अपने बच्चों को सुरक्षित स्थान पर रखकर आने को कहा। शिकारी ने उसे भी जाने दिया। थोड़ी देर बाद वहां एक हिरन अपनी हिरनी को खोज में आया। इस बार भी वही सब हुआ और तीसरे प्रहर में भी शिवलिंग की पूजा हो गई। वह हिरन भी अपने बच्चों को सुरक्षित स्थान पर छोड़कर आने की बात कहकर चला गया। जब वह तीनों हिरनी व हिरन मिले तो प्रतिज्ञाबद्ध होने के कारण तीनों शिकारी के पास आ गए। सबको एक साथ देखकर शिकारी बड़ा खुश हुआ और उसने फिर से अपने धनुष पर बाण चढ़ाया, जिससे चौथे प्रहर में पुन: शिवलिंग की पूजा हो गई। इस प्रकार गुरुद्रुह दिनभर भूखा-प्यासा रहकर रात भर जागता रहा और चारों प्रहर अंजाने में ही उससे शिव की पूजा हो गई, जिससे शिवरात्रि का व्रत संपन्न हो गया। इस व्रत के प्रभाव से उसके पाप तत्काल ही भस्म हो गए। पुण्य उदय होते ही उसने हिरनों को मारने का विचार त्याग दिया। तभी शिवलिंग से भगवान शंकर प्रकट हुए और उन्होंने गुरुद्रुह को वरदान दिया कि त्रेतायुग में भगवान राम तुम्हारे घर आएंगे और तुम्हारे साथ मित्रता करेंगे। तुम्हें मोक्ष भी प्राप्त होगा। इस प्रकार अंजाने में किए गए शिवरात्रि व्रत से भगवान शंकर ने शिकारी को मोक्ष प्रदान कर दिया। शिव महापुराण में लिखे हैं मनोकामना पूर्ति के ये आसान उपाय 1. भगवान शिव को चावल चढ़ाने से धन की प्राप्ति होती है। 2. तिल चढ़ाने से पापों का नाश हो जाता है। 3. जौ अर्पित करने से सुख में वृद्धि होती है। 4. गेहूं चढ़ाने से संतान वृद्धि होती है। 5. बुखार होने पर भगवान शिव को जल चढ़ाने से शीघ्र लाभ मिलता है। 6. तेज दिमाग के लिए शक्कर मिला दूध भगवान शिव को चढ़ाएं। 7. शिवलिंग पर गन्ने का रस चढ़ाया जाए तो सभी आनंदों की प्राप्ति होती है। 8. शिव को गंगा जल चढ़ाने से भोग व मोक्ष दोनों की प्राप्ति होती है। 9. शहद से भगवान शिव का अभिषेक करने से टीबी रोग में आराम मिलता है। 10. यदि शारीरिक रूप से कमजोर कोई व्यक्ति भगवान शिव का अभिषेक गाय के शुद्ध घी से करे तो उसकी कमजोरी दूर हो सकती है। 11. लाल व सफेद आंकड़े के फूल से भगवान शिव का पूजन करने पर मोक्ष की प्राप्ति होती है। 12. भगवान शिव की पूजा चमेली के फूल से करने पर वाहन सुख मिलता है। 13. अलसी के फूलों से शिव की पूजा करने पर मनुष्य भगवान विष्णु को प्रिय होता है। 14. शमी वृक्ष के पत्तों से पूजन करने पर मोक्ष प्राप्त होता है। 15. बेला के फूल से पूजा करने पर सुंदर व सुशील पत्नी मिलती है। 16. जूही के फूल से भगवान शिव की पूजा करें तो घर में कभी अन्न की कमी नहीं होती। 17. कनेर के फूलों से भगवान शिव की पूजा करने से नए वस्त्र मिलते हैं। 18. हरसिंगार के फूलों से पूजन करने पर सुख-सम्पत्ति में वृद्धि होती है। 19. धतूरे के फूल से पूजन करने पर भगवान शंकर सुयोग्य पुत्र प्रदान करते हैं, जो कुल का नाम रोशन करता है। 20. लाल डंठलवाला धतूरा शिव पूजा में शुभ माना गया है।
आज का संदेश जिसको हम हृदय से महत्त्व देते हैं उसका सहज चिंतन स्मरण बना रहता है। जैसे संसार को महत्त्व देते हैं, इसलिए संसार का सहज स्मरण चिंतन बना रहता है। लेकिन भगवान का उनका चिंतन स्मरण प्रयासपूर्वक करना पड़ता है। उनका चिंतन स्मरण सहज नही होता, क्योकि अभी भगवान हमारे लिए महत्त्वपूर्ण नही हुए हैं। जब भगवद्भक्त, विरक्त सन्तो के संग, उनके मुख से निकलने वाली अमृतमयी कथा, जिस कथा मे भगवान की भक्तवत्सलता, कृपालुता, दयालुता, उदारता, भक्तो के लिए विरह एवं लीला सौंदर्य रूप माधुरी होती है। उस कथा का श्रवण करेंगे एवं संसार की असारता और अस्थिरता का होशपूर्वक चिंतन करेंगे। तब धीरे धीरे भगवान का महत्त्व हृदय में बढ़ता जायगा और उनका सहज चिंतन स्मरण होने लगेगा। सुरपति दास इस्कॉन