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#यजुर्वेद में #गृहस्थों के लिए जन्म से मृत्यु तक सोलह संस्कारों को करने का उल्लेख है- षोडशिन एष ते योनिरिन्द्राय त्वा षोडशिने। यजुर्वेद 8.33 आइये जानते हैं कि ये कौन कौन से संस्कार हैं महर्षि दयानन्द ने संस्कार विधि में निम्न सोलह संस्कार का वर्णन किया है #गर्भाधान_संस्कार उत्तम सन्तान की प्राप्ति के लिये संस्कार। वैदिक मान्यतानुसार दम्पति अपनी इच्छानुसार बलवान्, रूपवान, विद्वान, गौरांग, वैराग्यवान् संस्कारोंवाली सन्तान को प्राप्त कर सकते हैं। इसके लिए ब्रह्मचर्य, उत्तम खान-पान व विहार, स्वाध्याय, सत्संग, दिनचर्या, चिन्तन आदि विषयों का पालन करना पड़ता है। #पुंसवन_संस्कार गर्भस्थ शिशु के मानसिक विकास हेतु गर्भाधान के पश्चात् दूसरे या तीसरे महीने किया जाने वाला संस्कार।इसका उदेश्य गर्भस्थ शिशु को पौरुषयुक्त अर्थात् बलवान, हृष्ट-पुष्ट,निरोगी, तेजस्वी, एवं सुन्दरता के लिए किया जाता है। #सीमन्तोन्नयन_संस्कार सीमन्त शब्द का अर्थ है मस्तिष्क और उन्नयन शब्द का अर्थ है विकास। इस संस्कार का उदेश्य है कि माता इस बात को अच्छी प्रकार समझे कि सन्तान के मानसिक विकास की जिम्मेवारी अब से उस पर आ पड़ी है। आठवे महिने तक गर्भस्थ शिशु के शरीर-मन-बुद्धि-हृदय ये चारों तैयार हो जाते हैं। #जातकर्म_संस्कार शिशु के संसार मे आगमन पर उसके स्वागत का यह संस्कार है। इसमें सन्तान की अबोध अवस्था में भी उस पर संस्कार डालने की चेष्टा की जाती है। यह नवजात शिशु के बुद्धिमान, बलवान, स्वस्थ एवं दीर्घजीवी होने की कामना हेतु किया जाता है। #नामकरण_संस्कार इस संस्कार का उदेश्य केवल शिशु को नाम भर देना नहीं है, अपितु उसे श्रेष्ठ से श्रेष्ठतर उच्च से उच्चतर मानव निर्माण करना है। #निष्क्रमण_संस्कार शिशु के जन्म के तीन माह पश्चात् चौथे माह में किया जाने वाला संस्कार। निष्क्रमण का अर्थ है बाहर निकलना। घर की अपेक्षा अधिक शुद्ध वातावरण में शिशु के भ्रमण की योजना का नाम निष्क्रमण संस्कार है। यह संस्कार शिशु को धरती चांद तारे सूर्य, वनस्पति आदि आस पास के वातावरण से परिचित कराने के लिए है। #अन्नप्राशन_संस्कार जन्म के पश्चात् छठवें माह में किया जाने वाला संस्कार।जीवन में पहले पहल बालक को अन्न खिलाना इस संस्कार का उद्देश्य है। #चूड़ाकर्म_संस्कार यह पहले, तीसरे अथवा पाँचवे वर्ष में किया जाने वाला संस्कार है। इसे मुंडन संस्कार भी कहते हैं। #कर्णवेध_संस्कार कान में छेद कर देना कर्णवेध संस्कार है। गृह्यसूत्रों के अनुसार यह संस्कार तीसरे या पांचवे वर्ष में कराना योग्य है। आयुवेद के ग्रन्थ सुश्रुत के अनुसार कान के बींधने से अन्त्रवृद्धि (हर्निया) की निवृत्ति होती है। #यज्ञोपवीत_संस्कार बच्चे की दीर्घायु की कामना से किया जाने वाला संस्कार। #वेदारम्भ_संस्कार यह उपनयन के साथ-साथ ही किया जाता है। बच्चे की ज्ञानवर्धन की कामना से किया जाने वाला संस्कार। #समावर्तन_संस्कार गृहस्थाश्रम में प्रवेश करने की कामना से किया जाने वाला संस्कार। #पाणिग्रहण_संस्कार पति-पत्नी को परिणय-सूत्र में बाँधने वाला संस्कार। #वानप्रस्थ_संस्कार इसका समय 50 वर्ष के उपरान्त का है। जब व्यक्ति नाना-नानी या दादा-दादी हो जाए तब अपनी स्त्री, पुत्र, भाई, बन्धु, पुत्रवधु आदि को सब गृहाश्रम का ज्ञान देकर परिवार से अलग वन की ओर यात्रा की तैयारी करने का संस्कार। #संन्यास_संस्कार संन्यास का अर्थ है सं + न्यास अर्थात् अब तक लगाव का बोझ जो उसके कन्धों पर है, उसे उठाकर अलग धर देना। संन्यास ग्रहण में लोकैषणा, वित्तैषणा, पुत्रैषणा का सवर्था त्याग आवश्यक माना जाता है। #अन्त्येष्टि_संस्कार मृत्यु के पश्चात किया जाने वाला संस्कार। मृतक शव के पंचमहाभूतों को जल्दी से जल्दी सूक्ष्म करके अपने मूल रूप में पहुंचा देना ही वैदिक अन्त्येष्टि संस्कार है। अग्नि द्वारा दाह कर्म ही एक ऐसा साधन है जिससे मृतदेह के सभी तत्व शीघ्र ही अपने मूल रूप में पहुंच जाते हैं।
सब मिल जुल कर रहना सीखो दोस्तो
तुम रक्षक काहू को डरना
जय हिन्द की सेना
जय मां लक्ष्मी नारायण
ॐ भगवते वासुदेवाय नमः जय मां लक्ष्मी