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D.P.BHATI

Jaipur

ज्ञान पाने को श्रृद्धा। लेनेे को हरिनाम । करने को सेवा। देने को अन्नदान। तरने को दीनता। डूबने को अभिमान। गुरु हरि में निरंतर राख मन कीजै जगत को कार्य व्यवहार। यह मंत्र है अनन्तकाल आनन्द को,कभी न देखैगो यम द्वार।।

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808 फ़ालोअर्ज़ • 727 फ़ालोइंग

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