ज्ञान पाने को श्रृद्धा।
लेनेे को हरिनाम ।
करने को सेवा।
देने को अन्नदान।
तरने को दीनता।
डूबने को अभिमान।
गुरु हरि में निरंतर राख मन कीजै जगत को कार्य व्यवहार।
यह मंत्र है अनन्तकाल आनन्द को,कभी न देखैगो यम द्वार।।
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