*मैथिलीशरण गुप्त की सुन्दर रचना* तप्त हृदय को , सरस स्नेह से, जो सहला दे , *मित्र वही है।* रूखे मन को , सराबोर कर, जो नहला दे , *मित्र वही है।* प्रिय वियोग ,संतप्त चित्त को , जो बहला दे , *मित्र वही है।* अश्रु बूँद की , एक झलक से , जो दहला दे , *मित्र वही है।* _*मित्र दिवस की शुभकामनाएं*_