टूटते और बिखरते , अपने
पीडा , बेटी की , या बाप की
प्रद्युम्न , तब और अब , विलक्षण
सच में , जीवन क्या है
बासी रोटी , बहुत आश्चर्य जनक
नया साल , दिनकर जी
आंखों के बरसने का कोई मौसम नहीं होता
रो,,,,टी और क्वारंटाइन