ॐ नमो नीलकण्ठाय🙏 ॐ पार्वतीपतये नमः🙏 आशुतोष भगवान शिव की कृपा आप पर सदा बनी रहे 🔱🌿🌿 ॐ नमः शिवाय 🙏 धर्म करने से पाप नहीं रहता, मौन रहने से कलह नहीं होती, और जागते रहने से भय नहीं होता। दान करने से धन नही घटता पूजा करने से दुख नही होता परोपकार करने से कुछ नही घटता सुख बांटने से सुख नही घटता शुभ विक्रम संवत्- 2076, हिजरी सन्- 1440-41, अयन- दक्षिणायन, मास- श्रावण, पक्ष- शुक्ल संवत्सर नाम- परिधावी ऋतु- वर्षा। तिथि- द्वादशी। नक्षत्र- पूर्वाषाढ़ा शुभ समय- प्रात: 9:39 से 11:23 तक, दोपहर 2:51 से 3:41 तक दिशा शूल- पूर्व दही खाकर तथा शिव को प्रणाम कर घर से निकलें। देवों के देव महादेव जी महाराज के चरणों में प्रणाम निवेदित करते हुए आप सभी को सावन सोमवार की शुभकामनाएं🙏🙏 ॐ नमः शिवाय 🐍🌹🌿🌹
श्रावण मास के दूसरे सोमवार की हार्दिक शुभेच्छा ॐ नमः शिवाय 🔱 भोलेशंकर मां पार्वती सहित आपके मन मंदिर में बिराजें🙏🙏 सोम प्रदोष पौराणिक शास्त्रों के अनुसार जो प्रदोष व्रत सोमवार के दिन आता है, उसे सोम प्रदोष व्रत कहते है। यह दिन शिवजी को प्रिय होने से इस दिन व्रत रखने तथा विधि-विधान से शिवजी का पूजन-अभिषेक करने से विचारों में सकारात्मकता आती हैं और हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त होती हैं। आइए जानें कैसे करें सोम प्रदोष के दिन व्रत-पूजन, पढ़ें विधि :- * सोम प्रदोष के दिन प्रात:काल नित्य कर्म से निवृत्त होकर बेलपत्र, गंगाजल, अक्षत, धूप, दीप आदि चढ़ाकर शिवजी का पूजन करना चाहिए। * सोम प्रदोष के पूरे दिन निराहार रहें। * पूरे दिन 'ॐ नम: शिवाय' मंत्र का मन ही मन अधिक से अधिक जप करें। * सोम प्रदोष व्रत की पूजा शाम 4.30 से लेकर 7.00 बजे के बीच की जाती है। * त्रयोदशी के दिन प्रदोष काल में यानी सूर्यास्त से 3 घड़ी पूर्व शिवजी का पूजन करना चाहिए। * व्रतधारी को चाहिए कि पूजन से पहले शाम को दुबारा स्नान कर स्वच्छ सफेद वस्त्र धारण करें। * पूजा स्थान को शुद्ध करें। * अगर घर में उचित व्यवस्था ना हो तो व्रतधारी शिव मंदिर जाकर भी पूजा कर सकते हैं। * पांच रंगों से रंगोली बनाकर मंडप तैयार करें। * पूजन की सभी सामग्री एकत्रित करें। * कलश अथवा लोटे में शुद्ध जल भरकर रख लें। * कुश के आसन पर बैठकर शिवजी की पूजा विधि-विधान से करें। * मंत्र- 'ॐ नम: शिवाय' कहते हुए शिवजी को जल अर्पित करें। * इसके बाद दोनों हाथ जोड़कर शिवजी का ध्यान करें। * शिवजी का ध्यान करते समय उनके इस स्वरूप का ध्यान धरें- - त्रिनेत्रधारी, मस्तक पर चंद्रमा का आभूषण धारण करने वाले पिंगल वर्ण के जटाजूटधारी, करोड़ों चंद्रमा के समान कांतिवान, नीले कंठ तथा अनेक रुद्राक्ष मालाओं से सुशोभित, रत्नजड़ित सिंहासन पर विराजमान, वरदहस्त, त्रिशूलधारी, नागों के कुंडल पहने, व्याघ्र चर्म धारण किए हुए भगवान शिव हमारे सारे कष्टों को दूर कर सुख-समृद्धि प्रदान करें। * इस प्रकार ध्यानमग्न होकर सोम प्रदोष व्रत की कथा सुनें अथवा सुनाएं। * कथा समाप्ति के बाद हवन सामग्री मिलाकर 'ॐ ह्रीं क्लीं नम: शिवाय स्वाहा' मंत्र से 11 या 21 या 108 बार आहुति दें। * तत्पश्चात शिवजी की आरती करें तथा प्रसाद वितरित करके भोजन ग्रहण करें। * व्रत करने वाले व्यक्ति को कम-से-कम 11 अथवा 26 त्रयोदशी व्रत के बाद उद्यापन करना चाहिए। सोम प्रदोष व्रत की पौराणिक कथा: सोम प्रदोष व्रत की पौराणिक व्रतकथा के अनुसार एक नगर में एक ब्राह्मणी रहती थी। उसके पति का स्वर्गवास हो गया था। उसका अब कोई आश्रयदाता नहीं था इसलिए प्रात: होते ही वह अपने पुत्र के साथ भीख मांगने निकल पड़ती थी। भिक्षाटन से ही वह स्वयं व पुत्र का पेट पालती थी। एक दिन ब्राह्मणी घर लौट रही थी तो उसे एक लड़का घायल अवस्था में कराहता हुआ मिला। ब्राह्मणी दयावश उसे अपने घर ले आई। वह लड़का विदर्भ का राजकुमार था। शत्रु सैनिकों ने उसके राज्य पर आक्रमण कर उसके पिता को बंदी बना लिया था और राज्य पर नियंत्रण कर लिया था इसलिए वह मारा-मारा फिर रहा था। राजकुमार ब्राह्मण-पुत्र के साथ ब्राह्मणी के घर रहने लगा। एक दिन अंशुमति नामक एक गंधर्व कन्या ने राजकुमार को देखा तो वह उस पर मोहित हो गई। अगले दिन अंशुमति अपने माता-पिता को राजकुमार से मिलाने लाई। उन्हें भी राजकुमार भा गया। कुछ दिनों बाद अंशुमति के माता-पिता को शंकर भगवान ने स्वप्न में आदेश दिया कि राजकुमार और अंशुमति का विवाह कर दिया जाए। उन्होंने वैसा ही किया। ब्राह्मणी प्रदोष व्रत करती थी। उसके व्रत के प्रभाव और गंधर्वराज की सेना की सहायता से राजकुमार ने विदर्भ से शत्रुओं को खदेड़ दिया और पिता के राज्य को पुन: प्राप्त कर आनंदपूर्वक रहने लगा। राजकुमार ने ब्राह्मण-पुत्र को अपना प्रधानमंत्री बनाया। ब्राह्मणी के प्रदोष व्रत के महात्म्य से जैसे राजकुमार और ब्राह्मण-पुत्र के दिन फिरे, वैसे ही शंकर भगवान अपने दूसरे भक्तों के दिन भी फेरते हैं। अत: सोम प्रदोष का व्रत करने वाले सभी भक्तों को यह कथा अवश्य पढ़नी अथवा सुननी चाहिए। ॐ नमः शिवाय 🔱🌿🌿🌺
*कंचन महल उन्हें दे श्याम, जिनके छत की आस नहीं..* *मैं मोर पंख की छांव में राजी चाहे कुछ भी पास नहीं 🙏🏻🌺 शुभ प्रभात🌺🙏🏻 हरि ॐ नमो भगवते वासुदेवाय एक गांव में जमींदार और उसके एक मजदूर की साथ ही मौत हुई। दोनों यमलोक पहुंचे। धर्मराज ने जमींदार से कहा: आज से तुम मजदूर की सेवा करोगे। मजदूर से कहा: अब तुम कोई काम नहीं करोगे, आराम से यहां रहोगे। जमींदार परेशान हो गया। पृथ्वी पर तो मजदूर जमींदार की सेवा करता था, पर अब उल्टा होने वाला था। जमींदार ने कहा: भगवन, आप ने मुझे यह सजा क्यों दी? मैं तो भगवान का परम भक्त हूं। प्रतिदिन मंदिर जाता था। देसी घी से भगवान की आरती करता था और बहुमूल्य चीजें दान करता था। धर्म के अन्य आयोजन भी मैं करता ही रहता था। धर्मराज ने मजदूर से पूछा: तुम क्या करते थे पृथ्वी पर? मजदूर ने कहा: भगवन, मैं गरीब मजदूर था। दिन भर जमींदार के खेत में मेहनत मजदूरी करता था। मजदूरी में उनके यहां से जितना मिलता था, उसी में परिवार के साथ गुजारा करता था। मोह माया से दूर जब समय मिलता था तब भगवान को याद कर लेता था। भगवान से कभी कुछ मांगा नहीं। गरीबी के कारण प्रतिदिन मंदिर में आरती तो नहीं कर पाता था, लेकिन जब घर में तेल होता तब मंदिर में आरती करता था और आरती के बाद दीपक को अंधेरी गली में रख देता था ताकि अंधेरे में आने-जाने वाले लोगों को प्रकाश मिले। धर्मराज ने जमींदार से कहा: आपने सुन ली न मजदूर की बात? भगवान धन-दौलत और अहंकार से खुश नहीं होते। भगवान मेहनत और ईमानदारी से कमाने वाले व्यक्ति से प्रसन्न रहते हैं। यह मजदूर तुम्हारे खेतों में काम करके खुश रहता था और सच्चे मन से भगवान की आराधना करता था। जबकि तुम आराधना ज्यादा धन पाने के लिए करते थे। तुम मजदूरों से ज्यादा काम लेकर कम मजदूरी देते थे। तुम्हारे इन्हीं कामों के कारण तुम्हें मजदूर का नौकर बनाया गया है ताकि तुम भी एक नौकर के दुख-दर्द को समझ सको। श्री हरि सभी का मंगल करें 🙏 हरि ॐ
ॐ कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने ।। प्रणतः क्लेशनाशाय गोविंदाय नमो नमः।।🙏🙏 श्रावण में विशेष फल देती है श्रीकृष्ण भक्ति, पढ़ें राशिनुसार कौन-सा जपें मंत्र श्रावण, कार्तिक, माघ व वैशाख मास विशेष भक्ति करने व सिद्धि प्राप्त करने के माह होते हैं। इन महीनों में की गई भक्ति अनन्य फल देती है। यशोदानंदन, राधाप्रिय, देवकीनंदन, वसुदेव श्रीकृष्ण की भक्ति श्रावण में विशेष फल देने वाली होती है। श्रावण शुक्ल पक्ष अष्टमी से भाद्रपद कृष्ण अष्टमी तक यदि भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति करें तो आपके मनोरथ पूर्ण होते हैं। यदि आपको भगवान श्रीकृष्ण की अनन्य कृपा प्राप्त करनी है, तो अपनी राशि अनुसार उनकी भक्ति करें। पढ़ें राशिनुसार मंत्र मेष : ॐ आदित्याय नम:। वृषभ : ॐ आदिदेव नम:। मिथुन : ॐ अचला नम:। कर्क : ॐ अनिरुद्ध नम:। सिंह : ॐ ज्ञानेश्वर नम:। कन्या : ॐ धर्माध्यक्ष नम:। तुला : ॐ सत्यव्त नम:। वृश्चिक : ॐ पार्थसारथी नम:। धनु : ॐ बर्धमानय नम:। मकर : ॐ अक्षरा नम:। कुंभ : ॐ सहस्राकाश नम:। मीन : ॐ आदिदेव नम:। दुख दूर सारे, हमारे हो गये.. जब से श्री श्याम, हम तुम्हारे हो गये.. स्नेह वंदन जय श्री कृष्ण.. आपका दिन शुभ एवं मंगलमय हो..🙏🌹