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*(लाला की सेवा-)🙏🏻*
*एक बड़े बूढ़े से बाबा थे मथुरा में। चिकित्सक ,7 वर्ष के थे , तभी से अपने दादा जी के साथ गिरिराज जी की परिक्रमा करते*,
*ऐसे करते 72 साल के हो गये*
*एक बार अपने नियम से वो रात में परिक्रमा जाने लगे। उस दिन मौसम थोड़ा खराब था*
*सबने मना कियापर वो माने नही।सोचा कल चिकित्सालय बन्द करना नही पड़ेगा। रात में ही परिक्रमा कर लूँगा।*
*तो निकल गये परिक्रमा के लियेजिस मार्ग से जाते थे वो कच्चा था।*
*पर उन्होंने तो मन बना ही लिया थाकि आज तो जाऊंगा हीमार्ग में वर्षा आरंभ हो गयी।*
*अब एक जगह गड्ढे में फंस गये बाबा। जितना पैर आगे निकालते उतना और धँस जाते उस कीचड़ में।*
*वे बाबा जी अक्सर एक पंक्ति को गाकर भगवान को खूब याद करते थे। जान चुके थे कि दलदल में फंस गया हूँ, बचूँगा तो नही अब। रात बहुत है कोई सहायता को भी नही आयेगा ।अब उन्होंने जोर जोर ऊँची आवाज़ से भगवान को याद करना आरंभ किया,-कहते,*
*श्री राधाकृष्ण के गह चरण,श्री गिरिवरधरण की ले शरण"*
*बीच बीच मे आर्तनाद भी करते, हे गोपाल, बंशीलाल अपने चरणों मे स्थान देना*
*एक नन्हे बालक की आवाज़ बाबा के कान में पड़ीको है ?*
*बाबा बोले- मैं परिकम्मा जात्री।*
*अरे लाला, कल कोई पूछे तो बता देना डॉक्टर साहब तो दलदल में लीन है गये।*
*कृपा करियो मो पै, घर वाले परेसान होंगे ।बालक बोला- अभी तो डाक्टरी करनी तोय, ले पकड़ लकुटिया और बाहर आ बाबा ।*
*बाबा ने सोचा- ये छोटा बालक कहाँ मेरा बोझ सह पायेगा। तो बोले- नाय नाय लाला, तू मेरो संदेशो दे दियो मथुरा । मेरे बोझ से तू भी दलदल में फंस गयो, तो बड़ो पाप लगेगो मोकूबालक बोला- मेरी चिंता छोड़ , लकुटिया पकड़ बाबा।मैं निकाल लूँगो तोय।*
*अब बाबा क्या करते, थाम ली बालक की लाठी, और उसदलदल से ऐसे बाहर निकल आये जैसे कोई तिनका , बाहर आ करदेखते हैं एक सुंदर सा बालक धीरे धीरे मुस्कुरा रहा है।*
*ऐसे भारी अंधेरे और बरसात में बालक को देख बाबा बोलेक्यो रे, तोय डर वर है कि नाये , इत्ती रात कू बाहर का कर रहयो है।माना तेरी मैय्या ने लाड़ में तोय बंसी देय दी, माथे मोरपंख लगा दई।पर यासे तू कृष्ण थोड़े बन जायेगो।*
*चल घर अपने मैं छोड़ि आऊं*
*बालक हँसकर बोला मेरी चिंता छोड़ !तोकू जा दगरे (मार्ग) ते पार कराय दूँ फिर जाऊंगो घर।*
*बाबा बोले- अरे तू तो बड़ो हठी बालक है। का काम करै है?*
*बालक बोला- कछु नाय। बस या गिरिराज पे डोलू।गैय्याचराऊँऔर कभी कभी तेरे जैसे दलदल में फंसे लोगों की मदद करूँ बाबा।*
*बाबा बोले- तेरी मैय्या बड़ी भागबान है, तेरे जैसो संस्कारी बालक जो पाया है।*
*बड़ी कृपा है तेरे परिवार में गिर्राज की।*
*लाला खिलखिला कर हंस दिया और बोला- अरे बाबरे तोपे कृपा नाय का?*
*बाबा कहते- कहां मेरी ऐसी किस्मत?*
*तभी बालक बोल उठा- अच्छा बाबा, अब ठीक मारग आय गयो है। अपना जपकर,परिकम्मालगा, मैं चलो । देर है गयी, आज मैय्या मारेगी मोहे।बालक कह कर थोड़ा पीछे रह गया*
*बाबा आगे चलते हुए आशीष देते जाते है "सुन, अपनी मैय्या को राम राम कहियो। तोहे आशीष।'" और जैसे ही पीछे मुड़कर देखते है, मार्ग सुनसान, अब उनका विवेक जाग्रत हुआ, अरे स्वयं प्रभु आये थे*
*अब बाबा कभी इधर ढूंढते कभी उधर, रज में खूब लोट लगाते, अपनी मूर्खता पर रोते और भाग्य पर हँसते। उसके बाद उन्होंने प्रण लिया कि जब तक वो रहेंगे, तब तक भगवान की शरण मे रह गिरिराज जी की परिक्रमा लगाते रहेंगे ।*
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