💟 *"बहुत सुंदर लीला"* 💟
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एक दिन राधा रानी ठाकुर जी को सबक सिखाने के लिए उनसे रूठ गयी। अनेक दिन बीत गए, पर वो कृष्ण से मिलने नहीं आई।
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जब कृष्ण उन्हें मनाने गए तो वहां भी उन्होंने बात करने से इनकार कर दिया। तो अपनी राधा को मनाने के लिए इस लीलाधर को एक लीला सूझी..!!
बृज में *लील्या गोदने वाली स्त्री को लालिहारण कहा जाता है।*
तो कृष्ण घूंघट ओढ़ कर एक लालिहारण का भेष बनाकर बरसाने की गलियों में पुकार करते हुए घूमने लगे..!!
जब वो बरसाने, राधा रानी की ऊंची अटरिया के नीचे आये तो आवाज़ देने लगे..!!
*मै दूर गाँव से आई हूँ, देख तुम्हारी ऊंची अटारी,*
*दीदार की मैं प्यासी, दर्शन दो वृषभानु दुलारी।*
*हाथ जोड़ विनंती करूँ, अर्ज मान लो हमारी,*
*आपकी गलिन गुहार करूँ, लील्या गुदवा लो प्यारी।।*
जब किशोरी जी ने यह आवाज सुनी तो तुरंत विशाखा सखी को भेजा
और उस लालिहारण को बुलाने के लिए कहा।
घूंघट में अपने मुँह को छिपाते हुए कृष्ण किशोरी जी के सामने पहुंचे और उनका हाथ पकड़ कर बोले कि कहो सुकुमारी तुम्हारे हाथ पे किस का नाम लिखूं।
तो किशोरी जी ने उत्तर दिया कि केवल हाथ पर नहीं मुझे तो पूरे श्री अंग
पर लील्या गुदवाना है और क्या लिखवाना है, किशोरी जी बता रही हैं..!!
माथे पे मदन मोहन, पलकों पे पीताम्बर धारी,
नासिका पे नटवर, कपोलों पे कृष्ण मुरारी,
अधरों पे अच्युत, गर्दन पे गोवर्धन धारी,
कानो में केशव, भृकुटी पे चार भुजा धारी,
छाती पे छलिया और कमर पे कन्हैया,
जंघाओं पे जनार्दन, उदर पे ऊखल बंधैया,
गुदाओं पर ग्वाल, नाभि पे नाग नथैया,
बाहों पे लिख बनवारी, हथेली पे हलधर के भैया,
नखों पे लिख नारायण, पैरों पे जग पालनहारी,
चरणों में चोर चित का, मन में मोर मुकुट धारी,
नैनो में तू गोद दे, नंदनंदन की सूरत प्यारी,
. *और*
रोम रोम पे लिख दे मेरे, रसिया रास बिहारी..!!
जब ठाकुर जी ने सुना कि राधा अपने रोम रोम पर मेरा नाम लिखवाना चाहती है, तो ख़ुशी से बौरा गए प्रभू उन्हें अपनी सुध न रही, वो भूल गए कि वो एक लालिहारण के वेश में बरसाने के महल में राधा के सामने ही बैठे हैं। वो खड़े होकर जोर जोर से नाचने लगे। उनके इस व्यवहार से किशोरी जी को बड़ा आश्चर्य हुआ कि इस लालिहारण को क्या हो गया। और तभी उनका घूंघट गिर गया और ललिता सखी को उनकी सांवरी सूरत का दर्शण हो गया और वो जोर से बोल उठी कि अरे.. ये तो बांके बिहारी है।
अपने प्रेम के इज़हार पर किशोरी जी बहुत लज्जित हो गयी और अब उनके पास कन्हैया को क्षमा करने के आलावा कोई रास्ता न था। ठाकुर जी भी किशोरी का अपने प्रति अपार प्रेम जानकर गदगद् और भाव विभोर हो गए।
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*जय जय श्री राधे कृष्ण..!!*
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