मंगला चरण
🏵🏵🏵🏵🏵🏵🏵🏵ram ram ji 🙏🌹🌹🌹🌹🌹 *एक महात्मा से मेरी मुलाक़ात हो गयी। मैंने गुज़ारिश की.. .... महात्मन ! कृपया जिंदगी की कोई नसीहत दीजिये मुझे....* *उन्होंने सवाल किया-- कभी बर्तन धोये हैं ?* *मैंने हैरान होकर कहा, ....... जी धोये हैं।* *उन्होंने पूछा,....क्या कुछ सीखा उससे ?* *मैंने कोई जवाब नहीं दिया...।* *वो मुस्कुराये और कहा.........* *"बर्तन को बाहर से कम और* *अन्दर से ज्यादा धोना पड़ता है.......* *बस यही जिन्दगी है।* 🏵🏵🏵🏵🏵🏵🏵🏵 शुभ प्रभात वंदन जी जय जिनेंद्र 🙏🙋♀️🍵
*ऊंचा होने का गुमान और छोटा होने का मलाल मिथ्या है, "इसीलिये...तो..." खेल खत्म होने के बाद शतरंज के सभी मोहरे एक ही डिब्बे में रखे जाते हैं ll जब तक एक दूसरे की मदद करते रहेंगे, तब तक कोई भी नही गिरेगा चाहे व्यापार हो, परिवार हो या फिर समाज !!!
शुभकामनाएं आप सभी को।। हर हर महादेव 🙏🙏🙏🌹🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿✍️🙏 कभी किसी महात्मा से यह मत पूछो कि तुम्हारी जाति क्या है, क्योंकि भगवान् के दरबार में जाति का बन्धन नहीं रह जाता । *भगवान को भेंट* पुरानी बात है, एक सेठ के पास एक व्यक्ति काम करता था । सेठ उस व्यक्ति पर बहुत विश्वास करता था l जो भी जरुरी काम हो सेठ हमेशा उसी व्यक्ति से कहता था। वो व्यक्ति भगवान का बहुत बड़ा भक्त था l वह सदा भगवान के चिंतन भजन कीर्तन स्मरण सत्संग आदि का लाभ लेता रहता था । . 🔸 एक दिन उस ने सेठ से श्री जगन्नाथ धाम यात्रा करने के लिए कुछ दिन की छुट्टी मांगी सेठ ने उसे छुट्टी देते हुए कहा भाई मैं तो हूं संसारी आदमी हमेशा व्यापार के काम में व्यस्त रहता हूं जिसके कारण कभी तीर्थ गमन का लाभ नहीं ले पाता । 🔹 तुम जा ही रहे हो तो यह लो 100 रुपए मेरी ओर से श्री जगन्नाथ प्रभु के चरणों में समर्पित कर देना । भक्त सेठ से सौ रुपए लेकर श्री जगन्नाथ धाम यात्रा पर निकल गया.. . 🔸 कई दिन की पैदल यात्रा करने के बाद वह श्री जगन्नाथ पुरी पहुंचा । मंदिर की ओर प्रस्थान करते समय उसने रास्ते में देखा कि बहुत सारे संत , भक्त जन, वैष्णव जन, हरि नाम संकीर्तन बड़ी मस्ती में कर रहे हैं । 🔹 सभी की आंखों से अश्रु धारा बह रही है । जोर-जोर से हरि बोल, हरि बोल गूंज रहा है । संकीर्तन में बहुत आनंद आ रहा था । भक्त भी वहीं रुक कर हरिनाम संकीर्तन का आनंद लेने लगा । . 🔸 फिर उसने देखा कि संकीर्तन करने वाले भक्तजन इतनी देर से संकीर्तन करने के कारण उनके होंठ सूखे हुए हैं वह दिखने में कुछ भूखे भी प्रतीत हो रहे हैं उसने सोचा क्यों ना सेठ के सौ रुपए से इन भक्तों को भोजन करा दूँ। . 🔹 उसने उन सभी को उन सौ रुपए में से भोजन की व्यवस्था कर दी। सबको भोजन कराने में उसे कुल 98 रुपए खर्च करने पड़े । . 🔸 उसके पास दो रुपए बच गए उसने सोचा चलो अच्छा हुआ दो रुपए जगन्नाथ जी के चरणों में सेठ के नाम से चढ़ा दूंगा l जब सेठ पूछेगा तो मैं कहूंगा पैसे चढ़ा दिए । सेठ यह तौ नहीं कहेगा 100 रुपए चढ़ाए । सेठ पूछेगा पैसे चढ़ा दिए मैं बोल दूंगा कि , पैसे चढ़ा दिए । झूठ भी नहीं होगा और काम भी हो जाएगा । . 🔹 भक्त ने श्री जगन्नाथ जी के दर्शनों के लिए मंदिर में प्रवेश किया श्री जगन्नाथ जी की छवि को निहारते हुए अपने हृदय में उनको विराजमान कराया । अंत में उसने सेठ के दो रुपए श्री जगन्नाथ जी के चरणो में चढ़ा दिए । और बोला यह दो रुपए सेठ ने भेजे हैं । . 🔸 उसी रात सेठ के पास स्वप्न में श्री जगन्नाथ जी आए आशीर्वाद दिया और बोले सेठ तुम्हारे 98 रुपए मुझे मिल गए हैं यह कहकर श्री जगन्नाथ जी अंतर्ध्यान हो गए । . 🔹 सेठ जाग गया सोचने लगा मेरा नौकर तौ बड़ा ईमानदार है , पर अचानक उसे क्या जरुरत पड़ गई थी उसने दो रुपए भगवान को कम चढ़ाए? उसने दो रुपए का क्या खा लिया ? उसे ऐसी क्या जरूरत पड़ी ? ऐसा विचार सेठ करता रहा । . 🔸 काफी दिन बीतने के बाद भक्त वापस आया और सेठ के पास पहुंचा। सेठ ने कहा कि मेरे पैसे जगन्नाथ जी को चढ़ा दिए थै ? भक्त बोला हां मैंने पैसे चढ़ा दिए । . 🔹 सेठ ने कहा पर तुमने 98 रुपए क्यों चढ़ाए दो रुपए किस काम में प्रयोग किए । तब भक्त ने सारी बात बताई की उसने 98 रुपए से संतो को भोजन करा दिया था । और ठाकुर जी को सिर्फ दो रुपए चढ़ाये थे । . 🔸 सेठ सारी बात समझ गया व बड़ा खुश हुआ तथा भक्त के चरणों में गिर पड़ा और बोला आप धन्य हो आपकी वजह से मुझे श्री जगन्नाथ जी के दर्शन यहीं बैठे-बैठे हो गए l सन्तमत विचार- भगवान को आपके धन की कोई आवश्यकता नहीं है । भगवान को वह 98 रुपए स्वीकार है जो जीव मात्र की सेवा में खर्च किए गए और उस दो रुपए का कोई महत्व नहीं जो उनके चरणों में नगद चढ़ाए गए l आज का दिन शुभ एवम मंगलमय हो l श्री राम कृपा हम सभी पर सदा बनी रहे l 🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴
आप "स्थिति- परिस्थिति" को नहीं बदल सकते हैं, लेकिन अपनी "प्रतिक्रिया" को जरूर बदल सकते हैं। आपकी प्रतिक्रिया "गीत" के रूप में भी हो सकती है और "गाली" के रूप में भी, यह तो आपके ऊपर ही निर्भर है। विचार करें, कहीं आप भी तो अज्ञानवश अकारण क्लेशों को तो जन्म नहीं दे रहे हैं..
जय जिनेन्द्र
Jain Jai Jinendra Good Morning एक जैसे दोस्त सारे नही होते, कुछ हमारे होकर भी हमारे नहीं होते, आपसे दोस्ती करने के बाद महसूस हुआ, कौन कहता है ‘तारे ज़मीं पर’ नहीं होते. सुप्रभात सुप्रभातम् नमस्ते दोस्तों🙏🏻 🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹