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JPgujjar Lohmod Dec 28, 2016 हरे कृष्ण
गिरीश कुमार शुक्ला (राजू) Dec 28, 2016 hare Krishna
जय माता दी 🌹🌹🌹🌹
🌹🙏 आप सभी को शुभ रात्रि सादर प्रणाम🙏🌹🌹********************************🌹 👉 #❤️जीवन की सीख # *🕉️🌹शुभ गुरुवार🌹🕉️* 🌴🌲🌺🌸🕉️🌺🌲🌴 👉 *अहंकार कभी ना करें* 👉*एक छोटा सा कंकर भी* 👉*मुंह में गया हुआ निवाला* 👉*बाहर निकाल सकता है* 👉*कर्म के पास न कागज है,न किताब लेकिन 👉👉फिर भी सारे जगत का* 👉 *हिसाब रखता है* 👉 *दुनिया के चार स्थान* 👉*कभी नहीं भरते । समुंद्र शमशान,* 👉*त्तृष्णा का घर और मनुष्य का मन* *🌳🌺 शुभ रात्रि वंदन🌺🌳* *🙏🙏*
🌹🌹 शुभ रात्रि वंदन 🙏🙏🌿💐🌺🌹 🌹🌹 जय श्री कृष्णा राधे राधे जी 🙏🙏💐🌺🌹🌿🌿🌺💐💐🌹🌿💐🌺🌹
🌿🌸🌿🕉️🔱🌷 Mata Rani Sabko Sadbudhi de Aur kalyan kare 🌷🔱🕉️🌿🌸🌿🌸🔥🌸🔥🌸🙏🌸🙏
🥀विश्वास तोड़ना नहीं,🥀 🌼 बनाना सिखों🌼 🥀कोई हम पर आंख बंद 🥀 🌼करके विश्वास करें,🌼 🥀 यह हमारा सौभाग्य है!🥀 🥀🙏🥀 राधे-राधे जी 🥀🙏,🥀
**जय श्री राधे कृष्णा जी* *शुभरात्रि वंदन* इस धरा पर चाहे नर हो या नारायण सबको अपने पूर्व कर्मों के अनुसार फल भोगना पड़ता है। नारद मुनि के श्राप के कारण ही भगवान विष्णु को राम रूप में अवतार लेकर देवी सीता से वियोग सहना पड़ा था। कई बार ऐसा देखा जाता है कि ईश्वर अवतार की कुछ घटनाएं हमें काल्पनिक प्रतीत होती हैं या फिर हमें उन घटनाओं पर तनिक संदेह होता है एसे ही कल किसी बंधुजन ने माता सीता की अग्नि परीक्षा के पोस्ट पर अपने विचार रखते हुए प्रभु श्रीराम पर प्रश्न चिन्ह लगा दिया कि माता जब वन में थी तो आखिर प्रभु श्रीराम ने माता को ढूंढने का प्रयास क्यों नहीं किया।आखिर क्यों जननी माँ को इतने कष्ट झेलने पड़े। आइए समझने का प्रयास करते हैं। हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार, नारद मुनि के श्राप के कारण ही भगवान विष्णु को राम रूप में अवतार लेकर देवी सीता से वियोग सहना पड़ा था। देवर्षि नारद को एक बार इस बात का अभिमान हो गया कि कामदेव भी उनकी तपस्या और ब्रह्मचर्य को भंग नहीं कर सकते। नारदजी ने यह बात शिवजी को बताई। देवर्षि के शब्दों में अहंकार झलक रहा था, शिवजी यह समझ चुके थे कि नारद अभिमानी हो गए हैं। भोलेनाथ ने नारद से कहा कि भगवान श्रीहरि के सामने अपना अभिमान इस प्रकार प्रदर्शित मत करना। इसके बाद नारद जी भगवान विष्णु के पास गए और शिवजी के समझाने के बाद भी उन्होंने श्रीहरि को पूरा प्रसंग सुना दिया। नारद भगवान विष्णु के सामने भी अपना अभिमान दिखा रहे थे, तब भगवान ने सोचा कि नारद का अभिमान तोड़ना ही होगा, यह शुभ लक्षण नहीं है। जब नारद कहीं जा रहे थे, तब रास्ते में उन्हें एक बहुत ही सुंदर नगर दिखाई दिया, जहां किसी राजकुमारी के स्वयंवर का आयोजन किया जा रहा था। नारद भी वहां पहुंच गए और राजकुमारी को देखते ही मोहित हो गए। यह सब भगवान श्रीहरि की माया थी। राजकुमारी का रूप और सौंदर्य नारद के तप को भंग कर चुका था। इस कारण उन्होंने राजकुमारी के स्वयंवर में हिस्सा लेने का मन बनाया। नारद भगवान विष्णु के पास गए और कहा कि आप अपना सुंदर रूप मुझे दे दीजिए और मुझे हरि जैसा बना दीजिए। हरि का दूसरा अर्थ ‘वानर’ भी होता है। नारद ये बात नहीं जानते थे। भगवान ने ऐसा ही किया, लेकिन जब नारद मुनि स्वयंवर में गए तो उनका मुख वानर के समान हो गया। उस स्वयंवर में भगवान शिव के दो गण भी थे, वे यह सभी बातें जानते थे और ब्राह्मण का वेश बनाकर यह सब देख रहे थे। जब राजकुमारी स्वयंवर में आई तो वानर के मुख वाले नारदजी को देखकर बहुत क्रोधित हुई। उसी समय भगवान विष्णु एक राजा के रूप में वहां आए। सुंदर रूप देखकर राजकुमारी ने उन्हें अपने पति के रूप में चुन लिया। यह देखकर शिवगण नारदजी की हंसी उड़ाने लगे और कहा कि पहले अपना मुख दर्पण में देखिए। जब नारदजी ने अपने चेहरा वानर के समान देखा तो उन्हें बहुत गुस्सा आया। नारद मुनि ने उन शिवगणों को अपना उपहास उड़ाने के कारण राक्षस योनी में जन्म लेने का श्राप दे दिया। शिवगणों को श्राप देने के बाद नारदजी भगवान विष्णु के पास गए और क्रोधित होकर उन्हें बहुत भला-बुरा कहने लगे। माया से मोहित होकर नारद मुनि ने श्रीहरि को श्राप दिया कि जिस तरह आज मैं स्त्री का वियोग सह रहा हूं उसी प्रकार मनुष्य जन्म लेकर आपको भी स्त्री वियोग सहना पड़ेगा। उस समय वानर ही तुम्हारी सहायता करेंगे. भगवान विष्णु ने कहा-ऐसा ही हो और नारद मुनि को माया से मुक्त कर दिया। तब नारद मुनि को अपने कटु वचन और व्यवहार पर बहुत ग्लानि हुई और उन्होंने भगवान श्रीहरि से क्षमा मांगी। परंतु दयालु श्रीहरि ने नारद को क्षमा करते हुए कहा कि ये उनकी ही माया थी। इस प्रकार नारद के दोनों श्राप फलीभूत हुए और भगवान विष्णु को राम रूप में जन्म लेकर अपनी पत्नी सीता का वियोग सहना पड़ा। जबकि शिवगणों ने राक्षस योनि में जन्म लिया। संदेश -इस धरा पर चाहे नर हो या नारायण सबको अपने पूर्व कर्मों के अनुसार फल भोगना पड़ता है। हम सत्संग ,हरि नाम के सहारे अपना कष्ट कम कर सकते हैं परंतु मुक्ति नहीं पा सकते।
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गिरीश कुमार शुक्ला (राजू) Dec 28, 2016
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