*मंगलवार_विशेष......
*प्रभु श्रीराम द्वारा लक्ष्मण का परित्याग
*औऱ महाप्रयाण की कथा
*वाल्मीकि रामायण के उत्तरकांड से !!!!!
*जब राज्य करते हुये श्रीरघुनाथजी को बहुत वर्ष व्यतीत हो गये तब एक दिन काल तपस्वी के वेश में राजद्वार पर आया । उसने सन्देश भिजवाया कि मैं महर्षि अतिबल का दूत हूँ और अत्यन्त आवश्यक कार्य से श्री रामचन्द्र जी से मिलना चाहता हूँ । सन्देश पाकर राजचन्द्रजी ने उसे तत्काल बुला भेजा । काल के उपस्थित होने पर श्रीराम ने उन्हें सत्कारपूर्वक यथोचित आसन दिया और महर्षि अतिबल का सन्देश सुनाने का आग्रह किया ।
*यह सुनकर मुनि वेषधारी काल ने कहा , " यह बात अत्यन्त गोपनीय है । यहाँ हम दोनों के अतिरिक्त कोई तीसरा व्यक्ति नहीं रहना चाहिये । मैं आपको इसी प्रतिज्ञा पर उनका सन्देश दे सकता हूँ कि यदि बातचीत के समय कोई व्यक्ति आ जाये तो आप उसका वध कर देंगे । "
*श्रीराम ने काल की बात मानकर लक्ष्मण से कहा, " तुम इस समय द्वारपाल को विदा कर दो और स्वयं ड्यौढ़ी पर जाकर खड़े हो जाओ । ध्यान रहे , इन मुनि के जाने तक कोई यहाँ आने न पाये । जो भी आयेगा , मेरे द्वारा मारा जायेगा । "
*जब लक्ष्मण वहाँ से चले गये तो उन्होंने काल से महर्षि का सन्देश सुनाने के लिये कहा । उनकी बात सुनकर काल बोला , " मैं आपकी माया द्वारा उत्पन्न आपका पुत्र काल हूँ । ब्रह्मा जी ने कहलाया है कि आपने लोकों की रक्षा करने के लिये जो प्रतिज्ञा की थी वह पूरी हो गई । अब आपके स्वर्ग लौटने का समय हो गया है । वैसे आप अब भी यहाँ रहना चाहें तो आपकी इच्छा है । "
*यह सुनकर श्रीराम ने कहा , " जब मेरा कार्य पूरा हो गया तो फिर मैं यहाँ रहकर क्या करूँगा ? मैं शीघ्र ही अपने लोक को लौटूँगा । "
*जब काल रामचन्द्र जी से इस प्रकार वार्तालाप कर रहा था , उसी समय राजप्रासाद के द्वार पर महर्षि दुर्वासा रामचन्द्रजी से मिलने आये । वे लक्ष्मण से बोले , " मुझे तत्काल राघव से मिलना है । विलम्ब होने से मेरा काम बिगड़ जायेगा । इसलिये तुम उन्हें तत्काल मेरे आगमन की सूचना दो । "
*लक्ष्मण बोले , " वे इस समय अत्यन्त व्यस्त हैं । आप मुझे आज्ञा दीजिये , जो भी कार्य हो मैं पूरा करूँगा । यदि उन्हीं से मिलना हो तो आपको दो घड़ी प्रतीक्षा करनी होगी । "
*यह सुनते ही मुनि दुर्वासा का मुख क्रोध से तमतमा आया और बोले , " तुम अभी जाकर राघव को मेरे आगमन की सूचना दो । यदि तुम विलम्ब करोगे तो मैं शाप देकर समस्त रघुकुल और अयोध्या को अभी इसी क्षण भस्म कर दूँगा । "
*ऋषि के क्रोधयुक्त वचन सुनकर लक्ष्मण सोचने लगे , चाहे मेरी मृत्यु हो जाये , रघुकुल का विनाश नहीं होना चाहिये । यह सोचकर उन्होंने रघुनाथजी के पास जाकर दुर्वासा के आगमन का समाचार जा सुनाया । रामचन्द्र जी काल को विदा कर महर्षि दुर्वासा के पास पहुँचे । उन्हें देखकर दुर्वासा ऋषि ने कहा , " रघुनन्दन! मैंने दीर्घकाल तक उपवास करके आज इसी क्षण अपना व्रत खोलने का निश्चय किया है । इसलिये तुम्हारे यहाँ जो भी भोजन तैयार हो तत्काल मँगाओ और श्रद्धापूर्वक मुझे खिलाओ । "
*रामचन्द्र जी ने उन्हें सब प्रकार से सन्तुष्ट कर विदा किया । फिर वे काल कि दिये गये वचन को स्मरण कर भावी भ्रातृ वियोग की आशंका से अत्यन्त दुःखी हुये ।
*अग्रज को दुःखी देख लक्ष्मण बोले , " प्रभु ! यह तो काल की गति है । आप दुःखी न हों और निश्चिन्त होकर मेरा वध करके अपनी प्रतिज्ञा पूरी करें । "
*लक्ष्मण की बात सुनकर वे और भी व्याकुल हो गये । उन्होंने गुरु वसिष्ठ तथा मन्त्रियों को बुलाकर उन्हें सम्पूर्ण वृतान्त सुनाया । यह सुनकर वसिष्ठ जी बोले , " राघव ! आप सबको शीघ्र ही यह संसार त्याग कर अपने-अपने लोकों को जाना है । इसका प्रारम्भ सीता के प्रस्थान से हो चुका है । इसलिये आप लक्ष्मण का परित्याग करके अपनी प्रतिज्ञा पूरी करें । प्रतिज्ञा नष्ट होने से धर्म का लोप हो जाता है । साधु पुरुषों का त्याग करना उनके वध करने के समान ही होता है । "
*गुरु वसिष्ठ की सम्मति मानकर श्री राम ने दुःखी मन से लक्ष्मण का परित्याग कर दिया । वहाँ से चलकर लक्ष्मण सरयू के तट पर आये । जल का आचमन कर हाथ जोड़ , प्राणवायु को रोक , उन्होंने अपने प्राण विसर्जन कर दिये ।
*महाप्रयाण,,,
*लक्ष्मण का त्याग करके अत्यन्त शोक विह्वल हो रघुनन्दन ने पुरोहित , मन्त्रियों और नगर के श्रेष्ठिजनों को बुलाकर कहा , " आज मैं अयोध्या के सिंहासन पर भरत का अभिषेक कर स्वयं वन को जाना चाहता हूँ । "
*यह सुनते ही सबके नेत्रों से अश्रुधारा बह चली । भरत ने कहा , " मैं भी अयोध्या में नहीं रहूँगा , मैं आपके साथ चलूँगा । आप कुश और लव का अभिषेक कीजिये । "
*प्रजाजन भी कहने लगे कि हम सब भी आपके साथ चलेंगे । कुछ क्षण विचार करके उन्होंने दक्षिण कौशल का राज्य कुश को और उत्तर कौशल का राज्य लव को सौंपकर उनका अभिषेक किया ।
*कुश के लिये विन्ध्याचल के किनारे कुशावती और लव के लिये श्रावस्ती नगरों का निर्माण कराया फिर उन्हें अपनी-अपनी राजधानियों को जाने का आदेश दिया । इसके पश्चात् एक द्रुतगामी दूत भेजकर मधुपुरी से शत्रघ्न को बुलाया । दूत ने शत्रुघ्न को लक्ष्मण के त्याग , लव-कुश के अभिषेक आदि की सारी बातें भी बताईं । इस घोर कुलक्षयकारी वृतान्त को सुनकर शत्रुघ्न अवाक् रह गये ।
*तदन्तर उन्होंने अपने दोनों पुत्रों सुबाहु और शत्रुघाती को अपना राज्य बाँट दिया । उन्होंने सबाहु को मधुरा का और शत्रुघाती को विदिशा का राज्य सौंप तत्काल अयोध्या के लिये प्रस्थान किया । अयोध्या पहुँचकर वे बड़े भाई से बोले , " मैं भी आपके साथ चलने के लिये तैयार होकर आ गया हूँ । कृपया आप ऐसी कोई बात न कहें जो मेरे निश्चय में बाधक हो । "
*इसी बीच सुग्रीव भी आ गये और उन्होंने बताया कि मैं अंगद का राज्यभिषक करके आपके साथ चलने के लिये आया हूँ । उनकी बात सुनकर रामचन्द्रजी मुस्कुराये और बोले , " बहुत अच्छा । "
*फिर विभीषण से बोले , " विभीषण ! मैं चाहता हूँ कि तुम इस संसार में रहकर लंका में राज्य करो । यह मेरी हार्दिक इच्छा है । आशा है , तुम इसे अस्वीकार नहीं करोगे । "
*विभीषण ने भारी मन से रामचन्द्र जी का आदेश स्वीकार कर लिया । श्रीराम ने हनुमान को भी सदैव पृथ्वी पर रहने की आज्ञा दी । जाम्बवन्त , मैन्द और द्विविद को द्वापर तथा कलियुग की सन्धि तक जीवित रहने का आदेश दिया ।
*अगले दिन प्रातःकाल होने पर धर्मप्रतिज्ञ श्री रामचन्द्र जी ने गुरु वसिष्ठ जी की आज्ञा से महाप्रस्थानोचित सविधि सब धर्मकृत्य किये ।
*तत्पश्चात् पीताम्बर धारण कर हाथ में कुशा लिये राम ने वैदिक मन्त्रों के उच्चारण के साथ सरयू नदी की ओर प्रस्थान किया । नंगे पैर चलते हुये वे सूर्य के समान प्रकाशमान मालूम पड़ रहे थे । उस समय उनके दक्षिण भाग में साक्षात् लक्ष्मी , वाम भाग में भूदेवी और उनके समक्ष संहार शक्ति चल रही थी । उनके साथ बड़े-बड़े ऋषि-मुनि और समस्त ब्राह्मण मण्डली थी ।
*वे सब स्वर्ग का द्वार खुला देख उनके साथ चले जाते थे । उनके साथ उनके राजमहल के सभी आबालवृद्ध स्त्री-पुरुष भी चल रहे थे । भरत व शत्रुघ्न भी अपने-अपने रनवासों के साथ श्रीराम के संग-संग चल रहे थे । सब मन्त्री तथा सेवकगण अपने परिवारों सहित उनके पीछे हो लिये ।
*उन सबके पीछे मानो सारी अयोध्या ही चल रही थी । मस्त ऋक्ष और वानर भी किलकारियाँ मारते , उछलते-कूदते , दौड़ते हुये चले । इस समस्त समुदाय में कोई भी दुःखी अथवा उदास नहीं था , बल्कि सभी इस प्रकार प्रफुल्लित थे जैसे छोटे बच्चे मनचाहा खिलौना पाने पर प्रसन्न होते हैं । इस प्रकार चलते हुये वे सरयू नदी के पास पहुँचे ।
*उसी समय सृष्टिकर्ता ब्रह्माजी सब देवताओं और ऋषियों के साथ वहाँ आ पहुँचे । श्रीराम को स्वर्ग ले जाने के लिये करोड़ों विमान भी वहाँ उपस्थित हुये । उस समय समस्त आकाशमण्डल दिव्य तेज से दमकने लगा ।
*शीतल-मंद-सुगन्धित वायु बहने लगी , आकाश में गन्धर्व दुन्दुभियाँ बजाने लगे , अप्सराएँ नृत्य करने लगीं और देवतागण फूल बरसाने लगे ।
*श्रीरामचन्द्रजी ने सभी भाइयों और साथ में आये जनसमुदाय के साथ पैदल ही सरयू नदी में प्रवेश किया । तब आकाश से ब्रह्माजी बोले , " हे राघव ! हे विष्णु ! आपका मंगल हो । हे विष्णुरूप रघुनन्दन ! आप अपने भाइयों के साथ अपने स्वरुपभूत लोक में प्रवेश करें । चाहें आप चतुर्भुज विष्णु रूप धारण करें और चाहें सनातन आकाशमय अव्यक्त ब्रह्मरूप में रहें । "
*पितामह ब्रह्मा जी की स्तुति सुनकर श्रीराम वैष्णवी तेज में प्रविष्ट हो विष्णुमय हो गये । सब देवता , ऋषि-मुनि , मरुदगण , इन्द्र और अग्निदेव उनकी पूजा करने लगे । नाग , यक्ष , किन्नर , अप्सराएँ तथा राक्षस आदि प्रसन्न हो उनकी स्तुति करने लगे । तभी विष्णुरूप श्रीराम ब्रह्माजी से बोले , " हे सुव्रत ! ये जितने भी जीव स्नेहवश मेरे साथ चले आये हैं , ये सब मेरे भक्त हैं , इस सबको स्वर्ग में रहने के लिये उत्तम स्थान दीजिये । "
*ब्रह्मा जी ने उन सबको ब्रह्मलोक के समीप स्थित संतानक नामक लोक में भेज दिया । वानर और ऋक्ष आदि जिन-जिन देवताओं के अंश से उत्पन्न हुये थे , वे सब उन्हीं में लीन हो गये । सुग्रीव ने सूर्यमण्डल में प्रवेश किया । उस समय जिसने भी सरयू में डुबकी लगाई वहीं शरीर त्यागकर परमधाम का अधिकारी हो गया ।
*रामायण की महिमा,,,
*लव और कुश ने कहा , " महर्षि वाल्मीकि रचित रामायण महाकाव्य यहाँ समाप्त होता है । यह महाकाव्य आयु तथा सौभाग्य को बढ़ाता है और पापों का नाश करता है । इसका नियमित पाठ करने से मनुष्य की सभी कामनाएँ पूरी होती हैं और अन्त में परमधाम की प्राप्ति होती है । "
*सूर्यग्रहण के समय कुरुक्षेत्र में एक भार स्वर्ण का दान करने से जो फल मिलता है , वही फल प्रतिदिन रामायण का पाठ करने या सुनने से होता है । यह रामायण काव्य गायत्री का स्वरूप है । यह चरित्र धर्म , अर्थ , काम और मोक्ष चारों पुरुषार्थों को देने वाला है । इस प्रकार इस पुरान महाकाव्य का आप श्रद्धा और विश्वास के साथ नियमपूर्वक पाठ करें । आपका कल्याण होगा ।
*जय श्रीराम जय श्री हनुमान*🚩🙏🌸
*जय-जय श्री राधेकृष्णा*🙏🌸🌸
कामेंट्स
[email protected] Jun 10, 2018
🙏Hare Krishna 🙏very nice video shubh sandhya
paresh G Lalpurwala Jun 10, 2018
@suru THANKS SARLA SISTER SHUBH SANDHYA JAY SWAMINARAYAN
paresh G Lalpurwala Jun 10, 2018
@anilvaswaniktgmailcom THANKS BRADHAR GOOD SANDHYA JAY SHREE RADHE KRISHNA JI JAY SWAMINARAYAN
Anita Mittal Jun 10, 2018
शुभ संध्या जी जय श्री कृष्णा जी आपका हर पल मंगलमय और शुभ हो भाईजी
paresh G Lalpurwala Jun 11, 2018
@babulalsaini7 THANKS BRADHAR GOOD AFTERNOON JAY SWAMINSRAYAN
paresh G Lalpurwala Jun 11, 2018
@anitamittal1 THANKS ANITA SISTER GOOD AFTERNOON JAY SWAMINSRAYAN
paresh G Lalpurwala Jun 11, 2018
@babulalsaini7 THANKS BHAIYA GOOD RATRI JAY SWAMINSRAYAN
paresh G Lalpurwala Jun 11, 2018
@babulalsaini7 THANKS BHAIYA SHUBH RATRI JAY SWAMINSRAYAN