"विहंगम योग" द्वारा प्रस्तुत हैं "अनंत श्री सद्गुरु कबीर साहेब" का भेदिक भजन जिसका अर्थ बुद्धि, मन, वाणी, विचार से नहीं लगाया जा सकता बल्कि इसका भेद तो हमें "विहंगम योग" की साधना द्वारा सद्गुरु के विमल प्रकाश में हीं बोध हो सकता हैं। आध्यात्मिक जगत् का अद्वितीय महान् सद्ग्रंथ "स्वर्वेद" में "विहंगम योग" के प्रणेता "अनंत श्री बीस कला विभूषित सद्गुरु महर्षि सदाफलदेव जी महाराज" ने लिखा -
"बिना संत सद्गुरु मिले, बोध किसी को नाहिं।
नहीं हुआ नहीं होयगा, बोध संत संग माहिं।।"
🙏जय सद्गुरु देव🙏
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