देना है तो दीजिये जनम जनम का साथ
💥सुप्रभात💥 ❤️🙏🏼❤️ ******** 🚩ऊँ लम्बोदराय नमोस्तुते👏 कार्य प्रारंभ करने से पहले, पूजते हैं हम श्री गणेश को, बिघ्न बाधा दूर करते हैं, हर लेते हैं हर क्लेश को। परहित कल्याण की सोच से, नहीं कोई सोच है दूजा। आज दिवस बुधवार को, गणपति की कीजिये पूजा। मैं भी विनती करता हूँ पार्वतिपुत्र से, सुमित से भरा रहे आपका पूरा परिवार। मेरा है आपको, स्नेहिल प्यार, खुब दुलार और अंतरउर से नमस्कार।। ^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^ 😀🌷✋❤️🙏 ::::::::::::::::::::::::::
🙏🌹🌹🌹🙏 *✍दुनिया से बात करने के लिये* *फोन की जरूरत होती है !* और *प्रभु से बात करने के लिये* *मौन की जरूरत होती है!* फोन से बात करने पर बिल देना पड़ता है , और ईश्वर से बात करने पर दिल देना पड़ता है। *"माया" को चाहने वाला,* *"बिखर" जाता है."* *भगवान को चाहने वाला,* *"निखर" जाता है..!!* शुभ रात्रि वंदन जी 🙏🌹💐💐🙏
*मौत का भय* दो उल्लू एक वृक्ष पर आ कर बैठे थे। एक ने अपने मुंह में सांप को दबोच रखा था। दूसरा उल्लू एक चूहा पकड़ लाया था। दोनों वृक्ष पर पास—पास बैठे थे —सांप ने चूहे को देखा तो वह यह भूल ही गया कि वह उल्लू के मुंह में है और मौत के करीब है, चूहे को देख कर उसके मुंह में लार बहने लगी। चूहे ने जैसे ही सांप को देखा वह कांपने लगा, जबकि दोनों ही मौत के मुंह मे बैठे हैं। दोनों उल्लू बड़े हैरान हुए। एक उल्लू ने दूसरे उल्लू से पूछा कि भाई, इसका कुछ राज समझे? दूसरे ने कहा, बिल्कुल समझ में आया। पहली बात तो यह है कि जीभ की इच्छा इतनी प्रबल है कि सामने मृत्यु खड़ी हो तो भी दिखाई नहीं पड़ती। दूसरी बात यह समझ में आयी कि भय मौत से भी बड़ा भय है। मौत सामने खड़ी है, उससे यह भयभीत नहीं है चूहा; लेकिन भय से भयभीत है कि कहीं सांप हमला न कर दे। *शिक्षा:-* हम भी मौत से भयभीत नहीं हैं, भय से ज्यादा भयभीत हैं। ऐसे ही जिह्वा का स्वाद इतना प्रगाढ़ है कि मौत चौबीस घंटे खड़ी है, फिर भी हमें दिखाई नहीं पड़ती है और हम अंधे होकर कुछ भी डकारते रहते हैं। *सदैव प्रसन्न रहिये।* *जो प्राप्त है, पर्याप्त है।।*shree ganesha namah ji🙏🙏🙏🌹🌹🌹🌹🌹🌹
🍁💎💓🍁💎💓🍁💎💓🍁 ♦️♦️ *रात्रि कहानी* ♦️♦️ *💥ईश्वर बहुत ही दयालु है😇☝🏻* ✍एक राजा का एक विशाल फलों का बगीचा था। उसमें तरह-तरह के फल लगते थे। उस बगीचे की सारी देख-रेख एक किसान अपने परिवार के साथ करता था। और वो किसान हर दिन बगीचे के ताजे फल लेकर राजा के राजमहल में जाता था। एक दिन किसान ने पेड़ों पर देखा, कि नारियल, अनार, अमरूद और अंगूर आदि पक कर तैयार हो रहे हैं। फिर वो किसान सोचने लगा- कि आज कौन सा फल राजा को अर्पित करूं? और उसे लगा कि आज राजा को अंगूर अर्पित करने चाहिएं, क्योंकि वो बिल्कुल पक कर तैयार हैं। फिर उसने अंगूरों की टोकरी भर ली और राजा को देने चल पड़ा। किसान जब राजमहल में पहुंचा, तो राजा किसी दूसरे ख्याल में खोया हुआ था और थोड़ी सा नाराज भी लग रहा था। किसान ने रोज की तरह मीठे रसीले अंगूरों की टोकरी राजा के सामने रख दी, और थोड़ी दूरी पर बैठ गया। अब राजा उसी ख्यालों में टोकरी में से अंगूर उठाता, एक खाता और एक खींचकर किसान के माथे पर निशाना साधकर फेंक देता। राजा का अंगूर जब भी किसान के माथे या शरीर पर लगता था, तो किसान कहता- ईश्वर बड़ा ही दयालु है। राजा फिर और जोर से अंगूर फेंकता था, और किसान फिर वही कहता- ईश्वर बड़ा ही दयालु है। थोड़ी देर बाद जब राजा को एहसास हुआ, कि वो क्या कर रहा है और प्रत्युत्तर क्या आ रहा है, तो वो संभलकर बैठ गया और फिर किसान से कहा- मैं तुम्हें बार-बार अंगूर मार रहा हूं, और ये अंगूर तुम्हें लग भी रहे हैं, पर फिर भी तुम बार-बार यही क्यों कह रहे हो- ईश्वर बड़ा ही दयालु है। किसान बड़ी ही नम्रता से बोला- राजा जी! बागान में आज नारियल, अनार, अमरुद और अंगूर आदि फल तैयार थे, पर मुझे भान हुआ कि क्यों न मैं आज आपके लिए अंगूर ले चलूं। अब लाने को तो मैं नारियल, अनार और अमरुद भी ला सकता था, पर मैं अंगूर लाया। यदि अंगूर की जगह नारियल, अनार या अमरुद रखे होते, तो आज मेरा हाल क्या होता? इसीलिए मैं कह रहा था- ईश्वर बड़ा ही दयालु है। तात्पर्य------ इसी प्रकार ईश्वर भी हमारी कई मुसीबतों को बहुत ही हल्का करके हमें उबार लेता है। पर ये तो हम ही नाशुकरे हैं जो शुक्र न करते हुए, उल्टा उसे ही गुनहगार ठहरा देते हैं। मेरे साथ ही ऐसा क्यूं हुआ? मेरा क्या कसूर था ? *नित याद करो मन से शिव को💥* 🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁
*💐ध्यान में मौत का उत्सव.💐* एक साधु जीवनभर इतना प्रसन्न था कि लोग हैरान थे। लोगों ने कभी उसे उदास नहीं देखा, कभी पीड़ित नहीं देखा। उसके शरीर छोड़ने का वक्त आया और उसने कहा कि अब मैं तीन दिन बाद मर जाऊंगा। यह मैं इसलिए बता रहा हूं कि जो आदमी जीवन भर हंसता था, उसकी मौत पर कोई रोए नहीं। जब मैं मर जाऊं, तो इस झोपड़े पर कोई उदासी न आए। यहां हमेशा आनंद था, यहां हमेशा खुशी थी। मेरी मौत को दुख मत बनाना, मेरी मौत को एक उत्सव बनाना। लोग बहुत दुखी हुए। वह तो अदभुत आदमी था। और जितना अदभुत आदमी हो, उतना उसके मरने का दुख घना था। उसको प्रेम करने वाले बहुत थे, वे सब तीन दिन से इकट्ठे होने शुरू हो गए। वह मरते वक्त तक लोगों को हंसा रहा था, अदभुत बातें कह रहा था और उनसे प्रेम की बातें कर रहा था। सुबह मरने के पहले उसने एक गीत गाया। गीत गाने के बाद उसने कहा, ‘स्मरण रहे, मेरे कपड़े मत उतारना। मेरी चिता पर मेरे पूरे शरीर को कपड़ों सहित चढ़ा देना । मुझे नहलाना मत।’ वह मर गया। उस की इच्छा थी इसलिए उसे कपड़े सहित चिता पर चढ़ा दिया। वह जब कपड़े सहित चिता पर रखा गया, लोग उदास खड़े थे, लेकिन देखकर हैरान हुए। उसने कपड़ों में फुलझड़ी और पटाखे छिपा रखे थे। वे चिता पर चढ़े और फुलझड़ी और पटाखे छूटने शुरू हो गए। चिता उत्सव बन गयी। लोग हंसने लगे और उन्होंने कहा, ‘जिसने जिंदगी में हंसाया, वह मौत में भी हमको हंसाकर गया है।’ जिंदगी को हंसना बनाना है। जिंदगी को एक खुशी और मौत को भी एक खुशी और जो आदमी ऐसा करने में सफल हो जाता है, उसे बड़ी धन्यता मिलती है और बड़ी कृतार्थता उपलब्ध होती है। जीवन और मृत्यु बिल्कुल पास पास हैं एक ही सिक्के के दो पहलू की तरह। जो क्रियाओं के अभ्यास से स्वांसों को पहचान कर मृत्यु को जान लेता है वह जीवन को भी जान लेता है और शांति का अनुभव कर लेता है। और हृदय में बैठे परमानंद की प्राप्ति करके सत्-चित्-आनंद का भी अनुभव कर लेता है और अपना मनुष्य जीवन सफल बना लेता है..!! चंचलता ईश्वर में है, स्थिरता आप में होनी चाहिए । 👉 *आज से हम* अपने मन को और दिल को खूबसूरत बनाएँ...
सादर सुप्रभात 🙏🙏 *अपने अंदर झांकिए* *जीवन के कितने ही बरस यूं ही गुजर गए, नया साल भी आया और गया। आप अपनी स्थिति को देखिए और कमी पूरी कीजिए।* *साधना करते-करते आप के अंदर प्रेम पैदा हुआ है या नहीं, और हुआ है तो कैसा है? कहीं प्रेम के स्थान पर मोह तो नहीं बढ़ रहा है?* *आपको अपने बच्चों और दूसरों के बच्चों में विशेष अन्तर तो नहीं दिखाई दे रहा है? यदि सभी अपने जैसे लगते हैं तो समझो कुछ प्रेम का संचार हो रहा है।* *सेवा करने के बजाय सेवा लेने का रोग तो पैदा नहीं हो गया है? इस रोग की रोकथाम अच्छी तरह कर रहे हैं या नहीं?* *कहीं और किसी तरफ से अभिमान तो सिर नहीं निकाल रहा है? आप उस पर पूरी निगरानी किए हैं या नहीं क्योंकि वह बहुत छिप कर आता है।* *यह दूसरी बात है कि आपके अंदर कुछ अच्छे गुण हो, पर कहीं उन्हें दूसरों को दिखाने का प्रयत्न तो नहीं हो रहा है। यदि ऐसा है तो इससे बचने का प्रयत्न करो, 'दर्प' इसी को कहते हैं।* *जो बात आपमें नहीं है उसे दूसरों के सामने झूठ-मुठ दिखाने का नाटक तो नहीं कर रहे हैं? इसे 'दंभ' कहते हैं जो बहुत बड़ा दोष है।* *परम भागवत परम संत पंडित मिहीलाल जी* *प्रवचन पराग*