Natvarsinh k.chavda ने यह पोस्ट की।
सुबह जागने से पहले दोनो हात देखने चाहिए अक्सर लोगों से कहते हुए सुना होगा कि दिन की शुरुआत बेहतर हो जाए तो पूरा दिन बन जाता है, लेकिन दिन की अच्छी शुरुआत के लिए कुछ अच्छे काम भी करने होते हैं। बहुत से लोग अपने दिन को बेहतर बनाने के लिए अपने कमरे में तरह-तरह के पोस्टर…या अपनी मेज पर किसी खास धार्मिक देवता की तस्वीर लगाते हैं जिन्हें वो सबसे पहले देखना चाहते हैं, ताकि उनका दिन बन जाए। वहीं कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो दिन में उठते ही सबसे पहले धरती मां के पैर छूते हैं और फिर बड़े बुजुर्गों का आशीर्वाद लेते हैं। माना जाता है कि ऐसा करने से लोगों पर ईश्वर की कृपा बनी रहती है। आज सन्मार्ग आपको बतायेगा कि आपको सबह उठते ही सबसे पहले क्या देखना चाहिए। सुबह उठकर सबसे पहले क्या देखें- बिस्तर से उठने के बाद सबसे पहले अपने हाथों को देखना चाहिए। ऐसा करना बहुत ही अच्छा माना जता है और यह काम कुछ लोगों की नियमित दिनचर्या का हिस्सा भी होता है। हमें सबसे पहले अपना हाथ देखकर प्रात: स्मरण मंत्र बोलना चाहिए। कराग्रे वसते लक्ष्मी, करमध्ये सरस्वती। करमूले तु गोविन्द:, प्रभाते करदर्शनम्।। क्या है श्लोक का अर्थ- इस श्लोक का अर्थ है कि हमारे हाथ के अग्र भाग में लक्ष्मी और हाल के मूल में सरस्वती का वास है। यानी भगवान ने हमारे हाथों में इतनी ताकत दे रखी है कि हम लक्ष्मी अर्जित कर सकते हैं। इतना ही नहीं सरस्वती और लक्ष्मी जिसे हम अर्जित करते हैं उनमें समन्वय बनाने के लिए प्रभु स्वयं हाथ के मध्य में बैठे हैं। इसलिए हमें दिन की बेहतर शुरुआत के लिए सबसे पहले अपनी दोनों हथेलियों को जोड़कर देखना चाहिए। जय श्री राम जय श्री कृष्ण जय श्री हरी ॐ 🙏 शुभ 🌅 शुभ शुक्रवार जय श्री लक्ष्मी नारायण 🙏 जय श्री गुरुदेव जय श्री गजानन 💐 जय श्री भोलेनाथ ॐ ऐं र्हिं ल्किं चामुण्डायै विच्चे जय माता की जय हो 🌹👏🚩🐚🎪🌷👪👬🚩
एक अच्छा "रिश्ता हमेंशा हवा" की तरह होना चाहिए खामोश" मगर हमेशा "आसपास" रिश्ता वो नहीं होता जो दुनिया को दिखाया जाता है रिश्ता वह होता है,जिसे दिल से निभाया जाता है अपना कहने से कोई अपना नहीं होता अपना वो होता है जिसे*दिल से अपनाया जाता है
श्री विष्णु चालीसा* दोहा* विष्णु सुनिए विनय सेवक की चितलाय। कीरत कुछ वर्णन करूं दीजै ज्ञान बताय। चौपाई* नमो विष्णु भगवान खरारी। कष्ट नशावन अखिल बिहारी॥ प्रबल जगत में शक्ति तुम्हारी। त्रिभुवन फैल रही उजियारी॥ सुन्दर रूप मनोहर सूरत। सरल स्वभाव मोहनी मूरत॥ तन पर पीतांबर अति सोहत। बैजन्ती माला मन मोहत॥ शंख चक्र कर गदा बिराजे। देखत दैत्य असुर दल भाजे॥ सत्य धर्म मद लोभ न गाजे। काम क्रोध मद लोभ न छाजे॥ संतभक्त सज्जन मनरंजन। दनुज असुर दुष्टन दल गंजन॥ सुख उपजाय कष्ट सब भंजन। दोष मिटाय करत जन सज्जन॥ पाप काट भव सिंधु उतारण। कष्ट नाशकर भक्त उबारण॥ करत अनेक रूप प्रभु धारण। केवल आप भक्ति के कारण॥ धरणि धेनु बन तुमहिं पुकारा। तब तुम रूप राम का धारा॥ भार उतार असुर दल मारा। रावण आदिक को संहारा॥ आप वराह रूप बनाया। हरण्याक्ष को मार गिराया॥ धर मत्स्य तन सिंधु बनाया। चौदह रतनन को निकलाया॥ अमिलख असुरन द्वंद मचाया। रूप मोहनी आप दिखाया॥ देवन को अमृत पान कराया। असुरन को छवि से बहलाया॥ कूर्म रूप धर सिंधु मझाया। मंद्राचल गिरि तुरत उठाया॥ शंकर का तुम फन्द छुड़ाया। भस्मासुर को रूप दिखाया॥ वेदन को जब असुर डुबाया। कर प्रबंध उन्हें ढूंढवाया॥ मोहित बनकर खलहि नचाया। उसही कर से भस्म कराया॥ असुर जलंधर अति बलदाई। शंकर से उन कीन्ह लडाई॥ हार पार शिव सकल बनाई। कीन सती से छल खल जाई॥ सुमिरन कीन तुम्हें शिवरानी। बतलाई सब विपत कहानी॥ तब तुम बने मुनीश्वर ज्ञानी। वृन्दा की सब सुरति भुलानी॥ देखत तीन दनुज शैतानी। वृन्दा आय तुम्हें लपटानी॥ हो स्पर्श धर्म क्षति मानी। हना असुर उर शिव शैतानी॥ तुमने ध्रुव प्रहलाद उबारे। हिरणाकुश आदिक खल मारे॥ गणिका और अजामिल तारे। बहुत भक्त भव सिन्धु उतारे॥ हरहु सकल संताप हमारे। कृपा करहु हरि सिरजन हारे॥ देखहुं मैं निज दरश तुम्हारे। दीन बन्धु भक्तन हितकारे॥ चहत आपका सेवक दर्शन। करहु दया अपनी मधुसूदन॥ जानूं नहीं योग्य जप पूजन। होय यज्ञ स्तुति अनुमोदन॥ शीलदया सन्तोष सुलक्षण। विदित नहीं व्रतबोध विलक्षण॥ करहुं आपका किस विधि पूजन। कुमति विलोक होत दुख भीषण॥ करहुं प्रणाम कौन विधिसुमिरण। कौन भांति मैं करहु समर्पण॥ सुर मुनि करत सदा सेवकाई। हर्षित रहत परम गति पाई॥ दीन दुखिन पर सदा सहाई। निज जन जान लेव अपनाई॥ पाप दोष संताप नशाओ। भव-बंधन से मुक्त कराओ॥ सुख संपत्ति दे सुख उपजाओ। निज चरनन का दास बनाओ॥ निगम सदा ये विनय सुनावै। पढ़ै सुनै सो जन सुख पावै॥ ॐ गं गणपतये नमः ॐ नमः शिवाय श्री हरी ॐ जय श्री हरी विष्णू जी जय श्री राम जय श्री कृष्ण जय श्री हरी ॐ नमो नारायणाय ॐ नमो भगवते वासुदेवाय 🙏 शुभ 🌅 शुभ बुधवार राम राम 👏 🚩 🐚 🌹 नमस्कार जय श्री जिनेंद्र 🌹🙏 🚩
“ऊँ नमो हनुमते रुद्रावताराय सर्वशत्रुसंहारणाय सर्वरोगहराय सर्ववशीकरणाय रामदूताय स्वाहा”ॐ ऐं भ्रीम हनुमते, श्री राम दूताय नम:🌹 👏 🚩 जय श्री राम जय श्री हनुमान जी 💐 👏 🚩 नमस्कार संध्या वंदन 🌄🌹 👣 👏 🌹 शुभ मंगलवार सबका मंगल हो जय श्री राम 🌹 👏 🚩 🌷 🌷 🌷 🌷 🌷 🌷 🌷 🌷 🌷 🌷
पाणी से जलता यहां दिपक हमारा भारत देश, आस्थाओं और विभिन्न रहस्यों से भरा हुआ देश है। यहां हर आधे किलोमीटर पर आपको धर्मस्थल मिल जाएंगे और हर धर्मस्थल के साथ ही एक कहानी भी। वहीं, हमारे देश में कुछ मंदिर से इतने रहस्यमयी है कि उनके रहस्यों के बारे मे आज तक कोई जान भी नहीं पाया है. आज हम आपको ऐसे ही एक मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जो मध्य प्रदेश में स्थित है. ये मंदिर देशभर में अद्भुत चमत्कार के मशहूर है. इस मंदिर में एक दिया वर्षों से जलता आ रहा है, लेकिन ये दिव्य ज्योत, तेल या घी से नहीं बल्कि पानी से जलती है. आज तक कई वैज्ञानिकों ने इस मंदिर का रहस्य समझने की कोशिश की, लेकिन किसी को कामयाबी नहीं मिली. यह मंदिर, मध्य प्रदेश के काली सिंध नदी के किनारे बसे आगर-मालवा जिले के अंतर्गत आने वाले नलखेड़ा गांव से लगभग 15 किमी दूर गाड़िया गांव के पास मौजूद है. इस मंदिर को गड़ियाघाट वाली माताजी के नाम से जाना जाता है. मंदिर के पुजारी के अनुसार, पहले इस मंदिर में हमेशा तेल का दीपक जलता था, लेकिन लगभग पांच साल पहले उन्हें मातारानी ने सपने में दर्शन देकर पानी से दीपक जलाने के लिए कहा. इसे मातारानी का आदेश मानते हुए पुजारी ने सुबह उठकर जब उन्होंने पास बह रही काली सिंध नदी से पानी भरा और उसे दीए में डाल दिया. दीपक में पानी डालने के बाद जैसे ही उसमे रखी हुई ज्योत के पास जलती हुई माचिस ले जाई गई, वैसे ही ज्योत जल उठी. यह देखकर पुजारी खुद भी अचंभित रह गए और लगभग दो महीने तक उन्होंने इस बारे में किसी को कुछ नहीं बताया. बाद में उन्होंने इस बारे में कुछ ग्रामीणों को बताया तो उन्होंने भी पहले विश्वास नहीं किया, मगर जब उन्होंने भी दीए में पानी डालकर ज्योति जलाने की कोशिश की, तो ज्योति जल उठी. बताया जाता है कि उसके बाद इस चमत्कार की बात आग की तरह पूरे गांव में फैल गई. तब से लेकर आज तक इस मंदिर में काली सिंध नदी के पानी से ही ज्योत प्रजलवित की जाती है . बताया जाता है कि जब दीपक में पानी डाला जाता है, तो वह चिपचिपे तरल पदार्थ में तब्दील हो जाता है और ज्योत जल उठती है. स्थानीय निवासियों के अनुसार, हालांकि पानी से जलने वाली यह ज्योत वर्षा ऋतू में नहीं जलती है. क्योंकि बरसात के मौसम में काली सिंध नदी का जल स्तर बढ़ने के चलते यह मंदिर पानी में डूब जाता है, जिससे यहां पूजा करना संभव नहीं होता। लेकिन शारदीय नवरात्रि के पहले दिन यानी घटस्थापना के साथ ज्योत दोबारा प्रज्जवलित कर दी जाती है, जो अगले साल बारिश के मौसम तक निरंतर जलती रहती है. जय श्री जगदंबे माता की जय हो भोलेनाथ ॐ ऐं र्हिं ल्किं चामुण्डायै विच्चे जय माता की 🌅 नमस्कार शुभप्रभात 🌅 शुभ शुक्रवार जय श्री लक्ष्मी नारायण जय श्री भोलेनाथ जय श्री पार्वती माता की जय हो आप सभी भारतवासी मित्रों को मेरा सुबह नमस्कार शुभप्रभात वंदन जय हो 🌹👏🚩🐚🎪👪👬🙏🚩 🌷 🌷 🌷 🌷 🌷 🌷 🌷 🌷 🌷
🌷🌷जय श्री हरि 🌷🌷 आप सभी को श्री हरि विष्णु जी का शुभ दिन गुरुवार की सुबह का राम राम 🙏🙏 श्री हरि विष्णु जी की कृपा से आपका हर दिन मंगलमय हो 🌹🌹🌹 🌷आज का सुविचार 🌷
भोग का फल..... एक सेठजी बड़े कंजूस थे। . एक दिन दुकान पर बेटे को बैठा दिया और बोले कि बिना पैसा लिए किसी को कुछ मत देना, मैं अभी आया। . अकस्मात एक संत आये जो अलग अलग जगह से एक समय की भोजन सामग्री लेते थे, . लड़के से कहा, बेटा जरा नमक दे दो। . लड़के ने सन्त को डिब्बा खोल कर एक चम्मच नमक दिया। . सेठजी आये तो देखा कि एक डिब्बा खुला पड़ा था। सेठजी ने कहा, क्या बेचा बेटा ? . बेटा बोला, एक सन्त, जो तालाब के किनारे रहते हैं, उनको एक चम्मच नमक दिया था। . सेठ का माथा ठनका और बोला, अरे मूर्ख ! इसमें तो जहरीला पदार्थ है। . अब सेठजी भाग कर संतजी के पास गए, सन्तजी भगवान् के भोग लगाकर थाली लिए भोजन करने बैठे ही थे कि.. . सेठजी दूर से ही बोले, महाराज जी रुकिए, आप जो नमक लाये थे वो जहरीला पदार्थ था, आप भोजन नहीं करें। . संतजी बोले, भाई हम तो प्रसाद लेंगे ही, क्योंकि भोग लगा दिया है और भोग लगा भोजन छोड़ नहीं सकते। . हाँ, अगर भोग नहीं लगता तो भोजन नही करते और कहते-कहते भोजन शुरू कर दिया। . सेठजी के होश उड़ गए, वो तो बैठ गए वहीं पर। . रात हो गई, सेठजी वहीं सो गए कि कहीं संतजी की तबियत बिगड़ गई तो कम से कम बैद्यजी को दिखा देंगे तो बदनामी से बचेंगे। . सोचते सोचते उन्हें नींद आ गई। सुबह जल्दी ही सन्त उठ गए और नदी में स्नान करके स्वस्थ दशा में आ रहे हैं। . सेठजी ने कहा, महाराज तबियत तो ठीक है। . सन्त बोले, भगवान की कृपा है..!! . इतना कह कर मन्दिर खोला तो देखते हैं कि भगवान् के श्री विग्रह के दो भाग हो गए हैं और शरीर काला पड़ गया है। . अब तो सेठजी सारा मामला समझ गए कि अटल विश्वास से भगवान ने भोजन का ज़हर भोग के रूप में स्वयं ने ग्रहण कर लिया और भक्त को प्रसाद का ग्रहण कराया। . सेठजी ने घर आकर बेटे को घर दुकान सम्भला दी और स्वयं भक्ति करने सन्त शरण चले गए। ** भगवान् को निवेदन करके भोग लगा करके ही भोजन करें, भोजन अमृत बन जाता है। .
🙏🔯 प्रेरणादायक श्लोक 🙏🔯