Jagannath puri
rameshbansal Jan 6, 2018 she'e ram ram ram ram ram ram ji
Raj Saxena Jan 6, 2018 Jai shree ram
rajuasati Jan 6, 2018 jay Jagannath
शामराव ठोंबरे पाटील Jan 6, 2018 जय श्री राम जय बजरंग बली
pragnesh trivedi Feb 27, 2018 jai shree ram su prabhat ji 🙏
श्री जगन्नाथ पुरी धाम में मणिदास नाम के माली रहते थे। इनकी जन्म तिथि का ठीक ठीक पता नहीं है परंतु संत बताते है की मणिदास जी का जन्म संवत् १६०० के लगभग जगन्नाथ पुरी में हुआ था । फूल-माला बेचकर जो कुछ मिलता था, उसमें से साधु-ब्राह्मणों की वे सेवा भी करते थे, दीन-दु:खियों को, भूखों को भी दान करते थे और अपने कुटुम्ब का काम भी चलाते थे । अक्षर-ज्ञान मणिदास ने नहीं पाया था; पर यह सच्ची शिक्षा उन्होंने ग्रहण कर ली थी कि दीन-दु:खी प्राणियों पर दया करनी चाहिये और दुष्कर्मो का त्याग करके भगवान का भजन करना चाहिये । संतो में इनका बहुत भाव था और नित्य मणिराम जी सत्संग में जाया करते थे । मणिराम का एक छोटा से खेत था जहांपर यह सुंदर फूल उगाते थे । मणिराम माली प्रेम से फूलों की माला बनाकर जगन्नाथजी के मंदिर के सामने ले जाकर बेचनेे के लिए रखते । एक माला सबसे पहले भगवान को समर्पित करता और शेष मालाएं भगवान के दर्शनों के लिए आने वाले भक्तों को बेच देता। फूल मालाएं बेचकर जो कुछ धन आता उसमे साधू संत गौ सेवा करता और बचा हुए धन से अपने परिवार का पालन पोषण करता था । कुछ समय बाद मणिदास के स्त्री-पुत्र एक भयंकर रोग की चपेट में आ गए और एक-एक करके सबका परलोकवास हो गया। जो संसार के विषयों में आसक्त, माया-मोह में लिपटे प्राणी हैं, वे सम्पत्ति तथा परिवार का नाश होने पर दु:खी होते हैं और भगवान को दोष देते हैं; किंतु मणिदास ने तो इसे भगवान की कृपा मानी। उन्होंने सोचा- मेरे प्रभु कितने दयामय हैं कि उन्होंने मुझे सब ओर से बन्धन-मुक्त कर दिया। मेरा मन स्त्री-पुत्र को अपना मानकर उनके मोह में फँसा रहता था, श्री हरि ने कृपा करके मेरे कल्याण के लिये अपनी वस्तुएँ लौटा लीं। मैं मोह-मदिरा से मतवाला होकर अपने सच्चे कर्तव्य को भूला हुआ था। अब तो जीवन का प्रत्येक क्षण प्रभु के स्मरण में लगाउँगा । मणिदास अब साधु के वेश में अपना सारा जीवन भगवान के भजन में ही बिताने लगे। हाथों में करताल लेकर प्रात: काल ही स्नानादि करके वे श्री जगन्नाथ जी के सिंह द्वार पर आकर कीर्तन प्रारम्भ कर देते थे। कभी-कभी प्रेम में उन्मत्त होकर नाचने लगते थे। मन्दिर के द्वार खुलने पर भीतर जाकर श्री जगन्नाथ जी की मूर्ति के पास गरुड़-स्तम्भ के पीछे खड़े होकर देर तक अपलक दर्शन करते रहते और फिर साष्टांग प्रणाम करके कीर्तन करने लगते थे। कीर्तन के समय मणिदास को शरीर की सुधि भूल जाती थी। कभी नृत्य करते, कभी खड़े रह जाते। कभी गाते, स्तुति करते या रोने लगते। कभी प्रणाम करते, कभी जय-जयकार करते और कभी भूमि में लोटने लगते थे। उनके शरीर में अश्रु, स्वेद, कम्प, रोमांच आदि आठों सात्त्विक भावों का उदय हो जाता था। उस समय श्री जगन्नाथ जी के मन्दिर में मण्डप के एक भाग में पुराण की कथा हुआ करती थी। कथावाचक जी विद्वान तो थे, पर भगवान की भक्ति उनमें नहीं थी। वे कथा में अपनी प्रतिभा से ऐसे-ऐसे भाव बतलाते थे कि श्रोता मुग्ध हो जाते थे। एक दिन कथा हो रही थी, पण्डित जी कोई अदभुत भाव बता रहे थे कि इतने में करताल बजाता ‘राम-कृष्ण-गोविन्द-हरि’ की उच्च ध्वनि करता मणिदास वहाँ आ पहुँचा । मणिदास तो जगन्नाथ जी के दर्शन करते ही बेसुध हो गया । मणिराम माली पता नहीं कि कहाँ कौन बैठा है या क्या हो रहा है। वह तो उन्मत्त होकर नाम-ध्वनि करता हुआ नाचने लगे । कथा वाचक जी को उसका यह ढंग बहुत बुरा लगा। उन्होंने डाँटकर उसे हट जाने के लिये कहा, परंतु मणिदास तो अपनी धुन में था। उसके कान कुछ नहीं सुन रहे थे। कथा वाचक जी को क्रोध आ गया। कथा में विघ्न पड़ने से श्रोता भी उत्तेजित हो गये। मणिदास पर गालियों के साथ-साथ थप्पड़ पड़ने लगे। जब मणिदास को बाह्यज्ञान हुआ, तब वह भौंचक्का रह गया। सब बातें समझ में आने पर उसके मन में प्रणय कोप जागा। उसने सोचा- जब प्रभु के सामने ही उनकी कथा कहने तथा सुनने वाले मुझे मारते हैं, तब मैं वहाँ क्यों जाऊँ ? जो प्रेम करता है, उसी को रूठने का भी अधिकार है। मणिदास आज श्री जगन्नाथ जी से रूठकर भूखा-प्यासा पास ही के एक मठ में दिनभर पड़ा रहा । मंदिर में संध्या-आरती हुई, पट बंद हो गये, पर मणिदास आया नहीं। रात्रि को द्वार बंद हो गये। राजा को स्वप्न में दर्शन पुरी-नरेश ने उसी रात्रि में स्वप्न में श्री जगन्नाथ जी के दर्शन किये। प्रभु कह रहे थे- तू कैसा राजा है ! मेरे मन्दिर में क्या होता है, तुझे इसकी खबर भी नहीं रहती। मेरा भक्त मणिदास नित्य मन्दिर में करताल बजाकर नृत्य किया करता है। तेरे कथावाचक ने उसे आज मारकर मन्दिर से निकाल दिया। उसका कीर्तन सुने बिना मुझे सब फीका जान पड़ता है। मेरा मणिदास आज मठ में भूखा-प्यासा पड़ा है। तू स्वयं जाकर उसे सन्तुष्ट कर। अब से उसके कीर्तन में कोई विघ्न नहीं होना चाहिये। कोई कथावाचक आज से मेरे मन्दिर में कथा नहीं करेगा। मेरा मन्दिर तो मेरे भक्तों के कीर्तन करने के लिये सुरक्षित रहेगा। कथा अब लक्ष्मी जी के मन्दिर में होगी। उधर मठ में पड़े मणिदास ने देखा कि सहसा कोटि-कोटि सूर्यों के समान शीतल प्रकाश चारों ओर फैल गया है। स्वयं जगन्नाथ जी प्रकट होकर उसके सिर पर हाथ रखकर कह रहे हैं- बेटा मणिदास ! तू भूखा क्यों है। देख तेरे भूखे रहने से मैंने भी आज उपवास किया है। उठ, तू जल्दी भोजन तो कर ले! भगवान अन्तर्धान हो गये। मणिदास ने देखा कि महाप्रसाद का थाल सामने रखा है। उसका प्रणयरोष दूर हो गया। प्रसाद पाया उसने। उधर राजा की निद्रा टूटी। घोड़े पर सवार होकर वह स्वयं जाँच करने मन्दिर पहुँचा। पता लगाकर मठ में मणिदास के पास गया और प्रणाम्।करके अपना स्वप्न सुनाया । राजा ने विनती करके कहा की आप पुनः नित्य की भाँती भगवान् को कीर्तन सुनाया करे । मणिदास में अभिमान तो था नहीं, वह राजी हो गया। राजा ने उसका सत्कार किया। करताल लेकर मणिदास स्तुति करता हुआ श्री जगन्नाथ जी के सम्मुख नृत्य करने लगा। उसी दिन से श्री जगन्नाथ-मन्दिर में कथा का बाँचना बन्द हो गया। कथा अब तक श्री जगन्नाथ जी के मन्दिर के नैऋत्य कोण में स्थित श्री लक्ष्मी जी के मन्दिर में होती है। दिव्यधाम गमन मणिदास जीवन भर श्री जगन्नाथ जी के मंदिर में कीर्तन करते रहे। अन्त मे श्री जगन्नाथ जी की सेवा के लिये लगभग ८० वर्ष की आयु में मणिदास जी भगवान् के दिव्य धाम पधारे। संतो ने मणिदास भक्त का जीवन काल संवत् १६०० से १६८० यह बताया है । जय भगवान श्री जगन्नाथ जी की। 🙏🙏🙏
श्री वैद्यनाथ धाम देवघर झारखंड शिखर दर्शन
भगवान् कृष्ण ने जब देह छोड़ा तो उनका अंतिम संस्कार किया गया , उनका सारा शरीर तो पांच तत्त्व में मिल गया लेकिन उनका हृदय बिलकुल सामान्य एक जिन्दा आदमी की तरह धड़क रहा था और वो बिलकुल सुरक्षित था , उनका हृदय आज तक सुरक्षित है जो भगवान् जगन्नाथ की काठ की मूर्ति के अंदर रहता है और उसी तरह धड़कता है , ये बात बहुत कम लोगो को पता है महाप्रभु का महा रहस्य सोने की झाड़ू से होती है सफाई...... महाप्रभु जगन्नाथ(श्री कृष्ण) को कलियुग का भगवान भी कहते है.... पुरी(उड़ीसा) में जग्गनाथ स्वामी अपनी बहन सुभद्रा और भाई बलराम के साथ निवास करते है... मगर रहस्य ऐसे है कि आजतक कोई न जान पाया हर 12 साल में महाप्रभु की मूर्ती को बदला जाता है,उस समय पूरे पुरी शहर में ब्लैकआउट किया जाता है यानी पूरे शहर की लाइट बंद की जाती है। लाइट बंद होने के बाद मंदिर परिसर को crpf की सेना चारो तरफ से घेर लेती है...उस समय कोई भी मंदिर में नही जा सकता... मंदिर के अंदर घना अंधेरा रहता है...पुजारी की आँखों मे पट्टी बंधी होती है...पुजारी के हाथ मे दस्ताने होते है..वो पुरानी मूर्ती से "ब्रह्म पदार्थ" निकालता है और नई मूर्ती में डाल देता है...ये ब्रह्म पदार्थ क्या है आजतक किसी को नही पता...इसे आजतक किसी ने नही देखा. ..हज़ारो सालो से ये एक मूर्ती से दूसरी मूर्ती में ट्रांसफर किया जा रहा है... ये एक अलौकिक पदार्थ है जिसको छूने मात्र से किसी इंसान के जिस्म के चिथड़े उड़ जाए... इस ब्रह्म पदार्थ का संबंध भगवान श्री कृष्ण से है...मगर ये क्या है ,कोई नही जानता... ये पूरी प्रक्रिया हर 12 साल में एक बार होती है...उस समय सुरक्षा बहुत ज्यादा होती है... मगर आजतक कोई भी पुजारी ये नही बता पाया की महाप्रभु जगन्नाथ की मूर्ती में आखिर ऐसा क्या है ??? कुछ पुजारियों का कहना है कि जब हमने उसे हाथमे लिया तो खरगोश जैसा उछल रहा था...आंखों में पट्टी थी...हाथ मे दस्ताने थे तो हम सिर्फ महसूस कर पाए... आज भी हर साल जगन्नाथ यात्रा के उपलक्ष्य में सोने की झाड़ू से पुरी के राजा खुद झाड़ू लगाने आते है... भगवान जगन्नाथ मंदिर के सिंहद्वार से पहला कदम अंदर रखते ही समुद्र की लहरों की आवाज अंदर सुनाई नहीं देती, जबकि आश्चर्य में डाल देने वाली बात यह है कि जैसे ही आप मंदिर से एक कदम बाहर रखेंगे, वैसे ही समुद्र की आवाज सुनाई देंगी आपने ज्यादातर मंदिरों के शिखर पर पक्षी बैठे-उड़ते देखे होंगे, लेकिन जगन्नाथ मंदिर के ऊपर से कोई पक्षी नहीं गुजरता। झंडा हमेशा हवा की उल्टी दिशामे लहराता है दिन में किसी भी समय भगवान जगन्नाथ मंदिर के मुख्य शिखर की परछाई नहीं बनती। भगवान जगन्नाथ मंदिर के 45 मंजिला शिखर पर स्थित झंडे को रोज बदला जाता है, ऐसी मान्यता है कि अगर एक दिन भी झंडा नहीं बदला गया तो मंदिर 18 सालों के लिए बंद हो जाएगा इसी तरह भगवान जगन्नाथ मंदिर के शिखर पर एक सुदर्शन चक्र भी है, जो हर दिशा से देखने पर आपके मुंह आपकी तरफ दीखता है। भगवान जगन्नाथ मंदिर की रसोई में प्रसाद पकाने के लिए मिट्टी के 7 बर्तन एक-दूसरे के ऊपर रखे जाते हैं, जिसे लकड़ी की आग से ही पकाया जाता है, इस दौरान सबसे ऊपर रखे बर्तन का पकवान पहले पकता है। भगवान जगन्नाथ मंदिर में हर दिन बनने वाला प्रसाद भक्तों के लिए कभी कम नहीं पड़ता, लेकिन हैरान करने वाली बात ये है कि जैसे ही मंदिर के पट बंद होते हैं वैसे ही प्रसाद भी खत्म हो जाता है। ये सब बड़े आश्चर्य की बात हैं.. 🚩 जय श्री जगन्नाथ 🚩 🙏🙏
बाबा गरीब नाथ मुजफ्फरपुर
🌹🌹🌹🌹🌹🌹 श्री जगन्नाथ जी🌹🌹🌹🌹 अति सुंदर भजन🌹🌹⚘🌹🌹⚘
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rameshbansal Jan 6, 2018
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Raj Saxena Jan 6, 2018
Jai shree ram
rajuasati Jan 6, 2018
jay Jagannath
शामराव ठोंबरे पाटील Jan 6, 2018
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pragnesh trivedi Feb 27, 2018
jai shree ram su prabhat ji 🙏