श्री अजनेश्वर जी धाम आश्रम कुमटीया की पहाड़ी पर स्थित है। यह आश्रम जोधपुर शहर में आया हुआ है। जो कि महान संत श्री अजनेश्वर जी के द्वारा स्थापित है। यह एक विदुषी महिला थी, इस आश्रम की परंपरा है कि यहां पर विदुषीया ही गाधी प्राप्त करती है। पुरुष को स्थान नहीं दिया जाता है। वर्तमान में शांतेश्वर जी महाराज इस गाधी पर गाधी पति है।
अभ्यास
बात पुरानी नहीं है, पर शिक्षा ने अब नवीन रुप ले लिया है। पहले हंसी मजाक में भी शिक्षण किया जाता था। आज की तरह कक्षा शिक्षण का प्रभाव नहीं था। घर की बुड्ढी औरतें भी शिक्षा के कई आयाम बच्चों को पूर्ण करवा देती थी। एक बार एक परिवार की वृद्ध दादी ने अपने पोते से एक प्रश्न किया, "पान सड़े, घोड़ा अड़े, विद्या बिसर जाए। बताओ किन कारण से?"
बच्चा असमंजस में आ गया उसने घर के सदस्यों से, वह पाठशाला में भी यह प्रश्न दोहराया। किसी ने सटीक उत्तर नहीं दिया। आखिर में बच्चे ने पुनः अपनी दादी से ही इस बात को स्पष्ट करने को कहा। दादी ने हंसते हुए कहा "बेटा छोटी बातों में बड़ा सार भरा रहता है देख तुझे एक छोटी घटना की जानकारी देती हूं जिसमें इस पंक्ति का रहस्य छुपा है।"
"एक बार लगातार तीन चार वर्ष तक अकाल पड़ा वर्षा का नामोनिशान नहीं था। ऊपर से भीषण गर्मी का प्रकोप। भगवान शिव व पारवती भ्रमण करने निकले, उन्होंने देखा कि एक किसान ऐसी गर्मी में भी खेत में हल चला रहा है। गर्मी में उसका हाल बेहाल था पर वह अपना काम नहीं छोड़ रहा था। शिव व पार्वती ने वह दृश्य देखा। पार्वती जी ने शिव से कहा "भगवान यह कैसा जीव है जो ऐसे काल वर्ष में भी खेत जोत रहा है क्या पता वर्षा होगी कि नहीं।" भगवान ने मुस्कुराकर कहा "पार्वती वर्षा की संभावना लगती तो नहीं है। लगता है इस किसान की सोच कमजोर है।" पार्वती ने कहा "हां प्रभु चलो नीचे चलकर हम इससे ही यह सब पूछ लेते हैं कि वह जानकर भी यह श्रम व्यर्थ में क्यों कर रहा है।" भेष बदल दोनों किसान के पास जाकर उन्होंने उस से यही प्रश्न किया। किसान कुछ क्षण रुका। पसीने को गमछे से पूछा फिर बोला "संत मै हल इसीलिए चला रहा हूं क्योंकि मैं मेरा अभ्यास छोड़ना नहीं चाहता। ऐसा ना करने पर बहुत कठिनाई हो जाती है इसलिए मेरा अभियास चालू रख रहा हूं।"
पार्वती ने बात की गहनता को समझा और प्रभु से बोली "भगवान यह सत्य है कि आप जब शंख बजाते हैं तब इंद्रदेव वर्षा की तैयारी करते हैं और वर्षा होती है। आपने भी 4 वर्ष से शंख नहीं बजाया है। ऐसा तो नहीं कि आप भी अभ्यास करना भूल गए हैं।" शंकर जी ने आश्चर्य से कहा "अरे हां ऐसा भी हो सकता है।" और उन्हें शीघ्रता अपना शंख निकाला और जोर से शंख पर फूक मारी। और देखते देखते वर्षा की जड़ी लगने लगी।"
"बेटा इस पंक्ति का अर्थ है, कि पान को पानी के बर्तन में रखने के बाद उसको पलटते रहना चाहिए, नहीं तो वह पानी में पड़े पड़े सड़ जाएगा। इसी प्रकार घोड़े को नियमित घुमाना चाहिए नहीं तो वह अड़ियल हो जाएगा। और अब विद्या की भी पुनरावृति करते रहना चाहिए नहीं तो भूल जाना सम्भव है। सार यही है, अभ्यास अनवरत करने पर ही सफलता मिलती है।"
दिनांक संकलनकर्ता
23/8/17 कैलाश चंद्र व्यास
जोधपुर, राजस्थान
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कामेंट्स
Kailash Chandra vyas Aug 26, 2017
ATI sunder.
Kailash Chandra vyas Aug 26, 2017
Aapne Satya VA sunder jankari ke lea sadhuwad.