लोकेशानन्द परमहंस -रामकथा -राज्याभिषेक
Swami Lokeshanand Oct 31, 2017 राम राम जी
जय सियाराम जय जय राम जी।
जय श्री राम
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Jai Shree Ram Jee 🙏💖 Good Evening Happy Tuesday
जय-जय श्रीराम जय-जय श्रीराम जय-जय श्रीराम जय-जय श्रीराम जय-जय श्रीराम जय-जय श्रीराम जय-जय श्रीराम जय-जय श्रीराम जय-जय श्रीराम जय-जय श्रीराम
जय श्री राम🚩🌹
. "क्यों लिया श्रीहरि विष्णु ने रामावतार ?" तीन पौराणिक प्रसंग हैं जो भगवान विष्णु के श्री राम के रूप में अवतार लेने से सम्बंधित है। "पहला प्रसंग" एक बार सनकादि मुनि भगवान विष्णु के दर्शन करने वैकुंठ आए। उस समय वैकुंठ के द्वार पर जय-विजय नाम के दो द्वारपाल पहरा दे रहे थे। जब सनकादि मुनि द्वार से होकर जाने लगे तो जय-विजय ने हंसी उड़ाते हुए उन्हें बेंत अड़ाकर रोक लिया। क्रोधित होकर सनकादि मुनि ने उन्हें तीन जन्मों तक राक्षस योनी में जन्म लेने का श्राप दे दिया। क्षमा मांगने पर सनकादि मुनि ने कहा कि तीनों ही जन्म में तुम्हारा अंत स्वयं भगवान श्रीहरि करेंगे। इस प्रकार तीन जन्मों के बाद तुम्हें मोक्ष की प्राप्ति होगी। पहले जन्म में जय-विजय ने हिरण्यकशिपु व हिरण्याक्ष के रूप में जन्म लिया। भगवान विष्णु ने वराह अवतार लेकर हिरण्याक्ष का तथा नृसिंह अवतार लेकर हिरण्यकशिपु का वध कर दिया। दूसरे जन्म में जय-विजय ने रावण व कुंभकर्ण के रूप में जन्म लिया। इनका वध करने के लिए भगवान विष्णु को राम अवतार लेना पड़ा। तीसरे जन्म में जय-विजय शिशुपाल और दंतवक्र के रूप में जन्मे। इस जन्म में भगवान श्रीकृष्ण ने इनका वध किया। "दूसरा प्रसंग" मनु और उनकी पत्नी शतरूपा से ही मनुष्य जाति की उत्पत्ति हुई। इन दोनों पति-पत्नी के धर्म और आचरण बहुत ही पवित्र थे। वृद्ध होने पर मनु अपने पुत्र को राज-पाठ देकर वन में चले गए। वहां जाकर मनु और शतरूपा ने कई हजार साल तक भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए तपस्या की। प्रसन्न होकर भगवान विष्णु प्रकट हुए और वर मांगने के लिए कहा। मनु और शतरूपा ने श्रीहरि से कहा कि हमें आपके समान ही पुत्र की अभिलाषा है। उनकी इच्छा सुनकर श्रीहरि ने कहा कि संसार में मेरे समान कोई और नहीं है। इसलिए तुम्हारी अभिलाषा पूरी करने के लिए मैं स्वयं तुम्हारे पुत्र के रूप में जन्म लूंगा। कुछ समय बाद आप अयोध्या के राजा दशरथ के रूप में जन्म लेंगे, उसी समय मैं आपका पुत्र बनकर आपकी इच्छा पूरी करूंगा। इस प्रकार मनु और शतरूपा को दिए वरदान के कारण भगवान विष्णु को राम अवतार लेना पड़ा। "तीसरा प्रसंग" देवर्षि नारद को एक बार इस बात का घमंड हो गया कि कामदेव भी उनकी तपस्या और ब्रह्मचर्य को भंग नहीं कर सके। नारदजी ने यह बात शिवजी को बताई। देवर्षि के शब्दों में अहंकार भर चुका था। शिवजी यह समझ चुके थे कि नारद अभिमानी हो गए हैं। भोलेनाथ ने नारद से कहा कि भगवान श्रीहरि के सामने अपना अभिमान इस प्रकार प्रदर्शित मत करना। इसके बाद नारद भगवान विष्णु के पास गए और शिवजी के समझाने के बाद भी उन्होंने श्रीहरि को पूरा प्रसंग सुना दिया। नारद भगवान विष्णु के सामने भी अपना घमंड प्रदर्शित कर रहे थे। तब भगवान ने सोचा कि नारद का घमंड तोड़ना होगा, यह शुभ लक्षण नहीं है। जब नारद कहीं जा रहे थे, तब रास्ते में उन्हें एक बहुत ही सुंदर नगर दिखाई दिया, जहां किसी राजकुमारी के स्वयंवर का आयोजन किया जा रहा था। नारद भी वहां पहुंच गए और राजकुमारी को देखते ही मोहित हो गए। यह सब भगवान श्रीहरि की माया ही थी। राजकुमारी का रूप और सौंदर्य नारद के तप को भंग कर चुका था। इस कारण उन्होंने राजकुमारी के स्वयंवर में हिस्सा लेने का मन बनाया। नारद भगवान विष्णु के पास गए और कहा कि आप अपना सुंदर रूप मुझे दे दीजिए, जिससे कि वह राजकुमारी स्वयंवर में मुझे ही पति रूप में चुने। भगवान ने ऐसा ही किया, लेकिन जब नारद मुनि स्वयंवर में गए तो उनका मुख वानर के समान हो गया। उस स्वयंवर में भगवान शिव के दो गण भी थे, वे यह सभी बातें जानते थे और ब्राह्मण का वेष बनाकर यह सब देख रहे थे। जब राजकुमारी स्वयंवर में आई तो बंदर के मुख वाले नारदजी को देखकर बहुत क्रोधित हुई। उसी समय भगवान विष्णु एक राजा के रूप में वहां आए। सुंदर रूप देखकर राजकुमारी ने उन्हें अपने पति के रूप में चुना लिया। यह देखकर शिवगण नारदजी की हंसी उड़ाने लगे और कहा कि पहले अपना मुख दर्पण में देखिए। जब नारदजी ने अपने चेहरा वानर के समान देखा तो उन्हें बहुत गुस्सा आया। नारद मुनि ने उन शिवगणों को राक्षस योनी में जन्म लेने का श्राप दे दिया। शिवगणों को श्राप देने के बाद नारदजी भगवान विष्णु के पास गए और क्रोधित होकर उन्हें बहुत भला-बुरा कहने लगे। माया से मोहित होकर नारद मुनि ने श्रीहरि को श्राप दिया कि- जिस तरह आज मैं स्त्री के लिए व्याकुल हो रहा हूं, उसी प्रकार मनुष्य जन्म लेकर आपको भी स्त्री वियोग सहना पड़ेगा। उस समय वानर ही तुम्हारी सहायता करेंगे। भगवान विष्णु ने कहा-ऐसा ही हो और नारद मुनि को माया से मुक्त कर दिया। तब नारद मुनि को अपने कटु वचन और व्यवहार पर बहुत ग्लानि हुई और उन्होंने भगवान श्रीहरि से क्षमा मांगी। भगवान श्रीहरि ने कहा कि- ये सब मेरी ही इच्छा से हुआ है अत: तुम शोक न करो। उसी समय वहां भगवान शिव के गण आए, जिन्हें नारद मुनि ने श्राप दिया था। उन्होंने नारद मुनि ने क्षमा मांगी। तब नारद मुनि ने कहा कि- तुम दोनों राक्षस योनी में जन्म लेकर सारे विश्व को जीत लोगे, तब भगवान विष्णु मनुष्य रूप में तुम्हारा वध करेंगे और तुम्हारा कल्याण होगा। नारद मुनि के इन्हीं श्रापों के कारण उन शिव गणों ने रावण व कुंभकर्ण के रूप में जन्म लिया और श्रीराम के रूप में अवतार लेकर भगवान विष्णु को स्त्री वियोग सहना पड़ा। ----------:::×:::---------- "जय श्रीराम" " कुमार रौनक कश्यप " ********************************************
🙏शुभ प्रभात 🙏 ============! ⏱️घडी़ की सुईयों जैसा होना चाहिए कोई छोटा हो... कोई बड़ा हो... कोई...स्लो हो...कोई फास्ट हो... पर जब किसी के 12:00 बजने वाले हो तो सब एक साथ हो... 🥀जय श्री राम " जय जय हनुमान🌷
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Swami Lokeshanand Oct 31, 2017
राम राम जी