ॐ साईं राम
🌹🙏 ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः 🙏🌹 ☘️🌷☘️ शुभसंध्या स्नेहवंदन जी ☘️🌷☘️
Radhe Radhe 🌹🌹🌹🌹🌹
Jay Shri Radhe Krishna ji shubh Ratri Jii
🙏🌹🙏जय श्री राधे कृष्ण 🌹🙏🌹🌹🌹🌹🌹ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः 🙏🌹🌹🙏🌹🌹🌹🌹राजा और गुरु🙏🌹🙏🙏🙏🙏🙏 एक राजा अपनी प्रजा का बहुत ध्यान रखते थे। उन्होंने अपने राज्य में अनेक विद्यालय, चिकित्सालय और अनाथालयों का निर्माण करवाया ताकि कोई भी व्यक्ति शिक्षा, चिकित्सा और आश्रय से वंचित न रहे। एक दिन अपनी प्रजा के सुख-दुख का पता लगाने के लिए वह अपने मंत्री के साथ दौरे पर निकले। उन्होंने गांवों, कस्बों व खेड़ों की यात्रा कर विभिन्न समस्याओं को जाना। कहीं सब ठीक था तो कहीं कुछ परेशानियां भी थीं। राजा ने लोगों को उनकी समस्याओं के शीघ्र निदान करने का आश्वासन दिया और आगे बढ़ गए। एक दिन जंगल से गुजरते हुए राजा को एक तेजस्वी संत से मिलने का मौका मिला। संत एक छोटी-सी कुटिया में रहकर छात्रों को पढ़ाते और सादा जीवन व्यतीत कर रहे थे। लौटते समय राजा ने संत को सोने की कुछ मोहरें भेंट करनी चाहीं। संत ने कहा : 'राजन, इनका हम क्या करेंगे? इन्हें आप गरीबों में बांट दें।' राजा ने जानना चाहा कि आश्रम में धनापूर्ति कैसे होती है तो संत बोले, 'हम क्रियाओं के अभ्यास द्वारा स्वांसों के भीतर की शक्ति के दिव्य रसायन से तांबे को सोना बना देते हैं। राजा ने चकित होकर कहा : 'अगर आप वह दिव्य रसायन मुझे उपलब्ध करा दें तो मैं अपने संपूर्ण राज्य को वैभवशाली बना सकता हूं।' संत ने कहा, 'आपको एक माह तक हमारे साथ सत्संग करना होगा। तभी इस ज्ञान की क्रिया को जाना जा सकता है। राजा एक माह तक सत्संग में आए। एक दिन संत ने कहा, 'राजन, अब आप स्वर्ण रसायन का तरीका जान लीजिए।' इस पर राजा बोले : 'गुरुवर, अब मुझे स्वर्ण रसायन की जरूरत नहीं है। आपने मेरे हृदय को ही अमृत रसायन बना डाला है।' वह समझ गए थे कि सत्संग से व्यक्ति काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार आदि विकारों से सहज ही मुक्त हो जाता है और स्वांसों के भीतर की दिव्य शक्ति आत्मा सात्विक प्रकाश से आलोकित हो जाती है।🙏🌹🙏🙏🕉🕉🕉🌹🙏🌹🙏 🌷🙏🌷🙏🌹🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🌹शुभ संध्या मंगलम🌹🙏🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🕉🕉🌹🌹🌹🙏🙏🕉🌹🌹🙏
Om Namho bhagvate vashudevay Namah Jii
Lord Vishnu Jii
Jay Shri Radhe Krishna ji shubh ratri ji