Live Vedeo (Bhajan )
सुख और ऐश्वर्यदायक हैं देवी स्कंदमाता, इस श्लोक—स्तुति से प्राप्त होती है मां की कृपा स्कंदमाता की पूजा से हर इच्छा पूरी होती है। मां स्कंदमाता को जहां अग्नि देवी के रूप में भी पूजा जाता है वहीं वे ममता की भी प्रतीक हैं। देवी स्कंदमाता की चार भुजा हैं। मां के दो हाथों में कमल पुष्प हैं और एक हाथ में बालरूप में भगवान कार्तिकेय हैं। मां का एक हाथ वरमुद्रा में है। नवरात्रि के पांचवें दिन मां दुर्गा के स्कंदमाता स्वरूप की पूजा की जाती है। स्कंद का मतलब होता है शिव—पार्वती के पुत्र भगवान कार्तिकेय अथवा मुरुगन। इस प्रकार मां स्कंदमाता का शाब्दिक अर्थ है — स्कंद की माता। मां स्कंदमाता की पूजा से हर इच्छा पूरी होती है। मां स्कंदमाता को जहां अग्नि देवी के रूप में भी पूजा जाता है वहीं वे ममता की भी प्रतीक हैं। देवी स्कंदमाता की चार भुजा हैं। मां के दो हाथों में कमल पुष्प हैं और एक हाथ में बालरूप में भगवान कार्तिकेय हैं। मां का एक हाथ वरमुद्रा में है। स्कंदमाता सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी हैं। ज्योतिषाचार्य पंडित नरेंद्र नागर के अनुसार यही कारण है कि इनका प्रभामंडल सूर्य के समान अलौकिक तेजोमय दिखाई देता है। मां स्कंदमाता कमल पर विराजमान हैं। स्कंदमाता की विश्वासपूर्वक पूजा करने पर मोक्ष मिल जाता है। इनकी उपासना सुख, ऐश्वर्यदायक है। श्लोक—स्तुति 1. सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया | शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी || 2. या देवी सर्वभूतेषु माँ स्कंदमाता रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।। हिंदी भावार्थ : हे मां! आप सर्वत्र विराजमान हैं. स्कंदमाता के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बारंबार प्रणाम है या मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूं।
*🌹कोरोना बचाव !! स्वस्ति प्रार्थना (मंत्र )🙏* 🌻🌸🌸🌻🌸🌸🌻 आप सभी से निवेदन है कि "स्वस्ति प्रार्थना" अपने घरों में प्रतिदिन जरूर करें !! कहा जाता है कि अथर्ववेद में, इस "श्लोक या मंत्र' का उपयोग प्राचीन काल में खराब वायरस - रोगाणुओं या किसी संक्रामक रोगों को मिटाने के लिए किया जाता था !! ईसमे सारे देवताओं की उपासना सभी बुरे ग्रहों का शमन एवं सभी के लिए 100 वर्षों के दीर्घायु होने का आशीर्वाद है !! 🌿🏵️🙏🙏🏵️🌿
जय माता दी 🔱🔱🔱🔱🔱 🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩 पिण्डजप्रवरारूढा चण्डकोपास्त्रकैर्युता. 💥💥💥💥💥💥💥 प्रसादं तनुते मह्यं चंद्रघण्टेति विश्रुता..🚩🔱🚩🔱 🔆🔆🔆🔆🔆🔆🔆
🍁JAI MAA SANTOSHI🍁
जय माता रानी🙏🏻 शुभ रात्रि आप सभी को जी🙏🌹🌹 🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
नवरात्रि के चौथे दिन मां कूष्मांडा की पूजा की जाती है। यह मां दुर्गा का चौथा स्वरूप हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, देवी कूष्मांडा ने ही इस सृष्टि की रचना की थी। इसी के चलते इन्हें सृष्टि की आदिस्वरूपा और आदिशक्ति भी कहा जाता है। मान्यता है कि शुरुआत में हर ओर अंधेरा व्याप्त था। तब देवी ने ब्रह्मांड की रचना अपनी मंद हंसी से की थी। अष्टभुजा देवी अपने हाथों में धनुष, बाण, कमल-पुष्प, कमंडल, जप माला, चक्र, गदा और अमृत से भरपूर कलश रखती हैं। आइए पढ़ते हैं मां कूष्मांडा की पूजन विधि, मंत्र, आरती और व्रत कथा। देवी कूष्मांडा के मंत्र: या देवी सर्वभूतेषु मां कूष्मांडा रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।। ध्यान मंत्र: वन्दे वांछित कामर्थेचन्द्रार्घकृतशेखराम्। सिंहरूढाअष्टभुजा कुष्माण्डायशस्वनीम्॥ आज विनायक चतुर्थी पर इस तरह करें गणेश जी की पूजा सुरासम्पूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च। दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे॥ देवी कूष्मांडा की आरती: कूष्मांडा जय जग सुखदानी। मुझ पर दया करो महारानी॥ पिगंला ज्वालामुखी निराली। शाकंबरी मां भोली भाली॥ लाखों नाम निराले तेरे । भक्त कई मतवाले तेरे॥ भीमा पर्वत पर है डेरा। स्वीकारो प्रणाम ये मेरा॥ सबकी सुनती हो जगदम्बे।
🔔🔔🔔🔔 . जाबनेर ग्राम में एक संतसेवी भक्त श्री गोपाल जी रहते थे। भगवान् से भक्त को इष्ट मानने की, सेवा करने की प्रतिज्ञा उन्होंने की थी और उसका पालन किया। . श्री गोपाल जी के कुल मे एक सज्जन (काकाजी) विरक्त वैष्णव हो गए थे। उन्होने सन्तो के मुख से इनकी निष्ठा प्रशंसा सुनी कि श्री गोपाल जी भक्तोंको इष्टदेव मानते हैं। . तब वे विरक्त संत श्री गोपाल भक्त की परीक्षा लेने के विचार से उनके द्वारपर आये। . इन्हें आया देखकर श्री गोपाल भक्त जी ने झट आकर सप्रेम साष्टांग दण्डवत् प्रणाम किया कि.. भगवन् ! अपने निज घर में पधारिये। . उन्होने (परीक्षा की दृष्टि से ) उत्तर दिया कि.. मेरी प्रतिज्ञा है कि मैं स्त्री का मुख न देखूंगा। तुम्हरे घर के भीतर जाकर मैं अपनी इस प्रतिज्ञा को कैसे छोड दूं ? . तब श्री गोपाल जी ने कहा.. आप अपनी प्रतिज्ञा न छोडिये। परिवार की सभी स्त्रियां एक ओर अलग छिप जायेंगी। आपके सामने नहीं आयेगी। . ऐसा कहकर घर के अंदर जाकर उन्होने सब स्त्रियो को अलग कमरे में छिपा दिया। तब इनको अंदर ले आये। . घर की स्त्रियां भी संतो में बड़ी निष्ठा रखती थी.. अतः इसी बीच सन्त दर्शन के भाव् से या कौतुकवश एक स्त्री ने बहार झाँककर संत जी को देखा.. . स्त्री की झांकते ही उन संत ने गोपाल भक्त के गालपर एक तमाचा मारा। श्री गोपालजी के मन मे जरा सा भी कष्ट नहीं हुआ। . श्री गोपाल जीे हाथ जोडकर बोले.. महाराज जी ! आपने एक कपोल (गाल ) को तमाचा प्रसाद दिया, वह तो कृतार्थ हो गया। . दूसरा आपके कृपाप्रसाद से वंचित रह गया। अत: उसे रोष हो रहा है, एक गाल को तो संत की कृपा प्राप्त हो गयी और दूसरा बिना कृपा के ही रह गया। . कृपा करके इस कपोलपर भी तमाचा मारकर इसे भी कृतार्थ कर दीजिये। . प्रियवाणी सुनकर उन वैष्णव संत के नेत्रो मे आसू भर आये। वह श्रीगोपाल जी के चरणो मे लिपट गए क्या और बोले.. . आपकी सन्तनिष्ठा अलौकिक है। मैने आकर आपकी परीक्षा ली। . आज मुझे आपसे बहुत बड़ी यह शिक्षा मिली कि भक्त को अति सहनशील होना चाहिये तथा भगवान् के भक्त को भगवान् से भी बढ़कर मानना चाहिये।
भजन के पाॅइण्ट हम जो भी, जितना भजन करते हैं, उसके पाॅइण्ट इकट्ठे होते रहते हैं, जैसे क्रैडिट कार्ड में होते हैं । भजन का फल भजन के स्तर में वृद्धि है फिर भी हम भजन के बल पर कभी अपनी लौकिक कामनाओं की भी पूर्ति चाहते हैं, कामनाऐं पूर्ण होती भी, नहीं भी होती। ये निर्भर करता है कि हमारे कितने पाॅइण्ट इकट्ठे हुए हैं । माना हमारे चार हजार पाॅइण्ट हैं, और कामना तीन हजार की हुयी तो पूरी होगी, पाँच हजार पाॅइण्ट की हुयी तो नहीं होगी। साथ ही यदि कामना पूर्ण हुयी तो तीन हजार पाॅइण्ट कम हो जाऐंगे और भजन वृद्धि रुकी रहेगी। इसलिए कामना हेतु अपने नियमित भजन से अलग भजन कर लेना चाहिये। इससे नियमित भजन से भजन वृद्धि नहीं रुकेगी। वैसे कामना-पूर्ति की बजाय कामना-नाश पर जोर देना चाहिए हमें । समस्त वैष्णव जन को राधा दासी का प्रणाम जय श्री राधे ।। जय निताई
((((( संगति, परिवेश और भाव ))))) . एक राजा अपनी प्रजा का भरपूर ख्याल रखता था. राज्य में अचानक चोरी की शिकायतें बहुत आने लगीं. कोशिश करने से भी चोर पकड़ा नहीं गया. . हारकर राजा ने ढींढोरा पिटवा दिया कि जो चोरी करते पकडा जाएगा उसे मृत्युदंड दिया जाएगा. सभी स्थानों पर सैनिक तैनात कर दिए गए. घोषणा के बाद तीन-चार दिनों तक चोरी की कोई शिकायत नही आई. . उस राज्य में एक चोर था जिसे चोरी के सिवा कोई काम आता ही नहीं था. उसने सोचा मेरा तो काम ही चोरी करना है. मैं अगर ऐसे डरता रहा तो भूखा मर जाउंगा. चोरी करते पकडा गया तो भी मरुंगा, भूखे मरने से बेहतर है चोरी की जाए. . वह उस रात को एक घर में चोरी करने घुसा. घर के लोग जाग गए. शोर मचाने लगे तो चोर भागा. पहरे पर तैनात सैनिकों ने उसका पीछा किया. चोर जान बचाने के लिए नगर के बाहर भागा. . उसने मुडके देखा तो पाया कि कई सैनिक उसका पीछा कर रहे हैं. उन सबको चमका देकर भाग पाना संभव नहीं होगा. भागने से तो जान नहीं बचने वाली, युक्ति सोचनी होगी. . चोर नगर से बाहर एक तालाब किनारे पहुंचा. सारे कपडे उतारकर तालाब मे फेंक दिया और अंधेरे का फायदा उठाकर एक बरगद के पेड के नीचे पहुंचा. . बरगद पर बगुलों का वास था. बरगद की जड़ों के पास बगुलों की बीट पड़ी थी. चोर ने बीट उठाकर उसका तिलक लगा लिया ओर आंख मूंदकर ऐसे स्वांग करने बैठा जैसे साधना में लीन हो. . खोजते-खोजते थोडी देर मे सैनिक भी वहां पहुंच गए पर उनको चोर कहीं नजर नहीं आ रहा था. खोजते खोजते उजाला हो रहा था ओर उनकी नजर बाबा बने चोर पर पडी. . सैनिकों ने पूछा- बाबा इधर किसी को आते देखा है. पर ढोंगी बाबा तो समाधि लगाए बैठा था. वह जानता था कि बोलूंगा तो पकडा जाउंगा सो मौनी बाबा बन गया और समाधि का स्वांग करता रहा. . सैनिकों को कुछ शंका तो हुई पर क्या करें. कही सही में कोई संत निकला तो ? आखिरकार उन्होंने छुपकर उसपर नजर रखना जारी रखा. यह बात चोर भांप गया. जान बचाने के लिए वह भी चुपचाप बैठा रहा. . एक दिन, दो दिन, तीन दिन बीत गए बाबा बैठा रहा. नगर में चर्चा शुरू हो गई की कोई सिद्ध संत पता नही कितने समय से बिना खाए-पीए समाधि लगाए बैठै हैं. सैनिकों को तो उनके अचानक दर्शऩ हुए हैं. . नगर से लोग उस बाबा के दर्शन को पहुंचने लगे. भक्तों की अच्छी खासी भीड़ जमा होने लगी. राजा तक यह बात पहुंच गई. राजा स्वयं दर्शन करने पहुंचे. राजा ने विनती की आप नगर मे पधारें और हमें सेवा का सौभाग्य दें. . चोर ने सोचा बचने का यही मौका है. वह राजकीय अतिथि बनने को तैयार हो गया. सब लोग जयघोष करते हुए नगर में लेजा कर उसकी सेवा सत्कार करने लगे. . लोगों का प्रेम और श्रद्धा भाव देखकर ढोंगी का मन परिवर्तित हुआ. उसे आभास हुआ कि यदि नकली में इतना मान-संम्मान है तो सही में संत होने पर कितना सम्मान होगा. उसका मन पूरी तरह परिवर्तित हो गया और चोरी त्यागकर संन्यासी हो गया. . संगति, परिवेश और भाव इंसान में अभूतपूर्व बदलाव ला सकता है. रत्नाकर डाकू को गुरू मिल गए तो प्रेरणा मिली और वह आदिकवि हो गए. असंत भी संत बन सकता है, यदि उसे राह दिखाने वाला मिल जाए. . अपनी संगति को शुद्ध रखिए, विकारों का स्वतः पलायन आरंभ हो जाएगा.
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