*ईश्वर का गणित*
*_त्याग !!_*
*एक बार दो आदमी एक मंदिर के पास बैठे गपशप कर रहे थे । वहां अंधेरा छा रहा था और बादल मंडरा रहे थे ।
*थोड़ी देर में वहां एक आदमी आया और वो भी उन दोनों के साथ बैठकर गपशप करने लगा ।
*कुछ देर बाद वो आदमी बोला उसे बहुत भूख लग रही है, उन दोनों को भी भूख लगने लगी थी ।
पहला आदमी बोला मेरे पास 3 रोटी हैं, दूसरा बोला मेरे पास 5 रोटी हैं, हम तीनों मिल बांट कर खा लेते हैं।
*उसके बाद सवाल आया कि 8 (3+5) रोटी तीन आदमियों में कैसे बांट पाएंगे ??
पहले आदमी ने राय दी कि ऐसा करते हैं कि हर रोटी के 3 टुकडे करते हैं, अर्थात 8 रोटी के 24 टुकडे (8 X 3 = 24) हो जाएंगे और हम तीनों में 8 - 8 टुकड़े बराबर बराबर बंट जाएंगे।
तीनों को उसकी राय अच्छी लगी और 8 रोटी के 24 टुकडे करके प्रत्येक ने 8 - 8 रोटी के टुकड़े खाकर भूख शांत की और फिर बारिश के कारण मंदिर के प्रांगण में ही सो गए ।
सुबह उठने पर तीसरे आदमी ने उनके उपकार के लिए दोनों को धन्यवाद दिया और प्रेम से 8 रोटी के टुकड़ों के बदले दोनों को उपहार स्वरूप 8 सोने की गिन्नी देकर अपने घर की ओर चला गया।
उसके जाने के बाद दूसरे आदमी ने पहले आदमी से कहा हम दोनों 4 - 4 गिन्नी बांट लेते हैं ।
पहला आदमी बोला नहीं मेरी 3 रोटी थी और तुम्हारी 5 रोटी थी, अतः मैं 3 गिन्नी लुंगा, तुम्हें 5 गिन्नी रखनी होगी।
इस पर दोनों में बहस होने लगी।
इसके बाद वे दोनों समाधान के लिये मंदिर के पुजारी के पास गए और उन्हें समस्या बताई तथा समाधान के लिए प्रार्थना की ।
पुजारी भी असमंजस में पड़ गया, दोनों दूसरे को ज्यादा देने के लिये लड़ रहे है । पुजारी ने कहा तुम लोग ये 8 गिन्नियाँ मेरे पास छोड़ जाओ और मुझे सोचने का समय दो, मैं कल सवेरे जवाब दे पाऊंगा ।
पुजारी को दिल में वैसे तो दूसरे आदमी की 3-5 की बात ठीक लग रही थी पर फिर भी वह गहराई से सोचते-सोचते गहरी नींद में सो गया।
कुछ देर बाद उसके सपने में भगवान प्रगट हुए तो पुजारी ने सब बातें बताई और न्यायिक मार्गदर्शन के लिए प्रार्थना की और बताया कि मेरे ख्याल से 3 - 5 बंटवारा ही उचित लगता है।
भगवान मुस्कुरा कर बोले- नहीं, पहले आदमी को 1 गिन्नी मिलनी चाहिए और दूसरे आदमी को 7 गिन्नी मिलनी चाहिए ।
भगवान की बात सुनकर पुजारी अचंभित हो गया और अचरज से पूछा- *प्रभु, ऐसा कैसे ?*
भगवन फिर एक बार मुस्कुराए और बोले :
इसमें कोई शंका नहीं कि पहले आदमी ने अपनी 3 रोटी के 9 टुकड़े किये परंतु उन 9 में से उसने सिर्फ 1 बांटा और 8 टुकड़े स्वयं खाया अर्थात उसका *त्याग* सिर्फ 1 रोटी के टुकड़े का था इसलिए वो सिर्फ 1 गिन्नी का ही हकदार है ।
दूसरे आदमी ने अपनी 5 रोटी के 15 टुकड़े किये जिसमें से 8 टुकड़े उसने स्वयं खाऐ और 7 टुकड़े उसने बांट दिए । इसलिए वो न्यायानुसार 7 गिन्नी का हकदार है .. ये ही मेरा गणित है और ये ही मेरा न्याय है !
ईश्वर की न्याय का सटिक विश्लेषण सुनकर पुजारी नतमस्तक हो गया।
*उपरोक्त का सार ये ही है कि हमारी वस्तुस्थिति को देखने की, समझने की दृष्टि और ईश्वर का दृष्टिकोण एकदम भिन्न है । हम ईश्वरीय न्यायलीला को जानने समझने में सर्वथा अज्ञानी हैं।*
*हम अपने त्याग का गुणगान करते है, परंतु ईश्वर हमारे त्याग की तुलना हमारे सामर्थ्य एवं भोग तौल कर यथोचित निर्णय करते हैं।*
Radhe krishna 🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
*जय श्री राधेकृष्णा*🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
*बेटी को सही रास्ता दिखाएँ ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
*एक युवती विवाह के पश्चात् अपने पति और सास के साथ अपने ससुराल में रहने लगी। कुछ ही दिनों बाद युवती को लगा की सास पुराने ख़यालों की है और वह नए विचारों वाली।
युवती का नाम प्रीती था ! उसका आये दिन सास के साथ झगडा होने लगा।
*हालात बद से बदतर होने लगे। प्रीती को अब अपनी सास से पूरी तरह नफरत हो चुकी थी ! अब वह किसी भी तरह सास से छुटकारा पाने की सोचने लगी !
*एक दिन जब प्रीती का अपनी सास से झगडा हुआ और पति भी अपनी माँ का पक्ष लेने लगा तो वह नाराज़ होकर मायके चली आई। प्रीती के पिता आयुर्वेद के डॉक्टर थे. उसने रो-रो कर अपनी व्यथा पिता को सुनाई और बोली – “आप मुझे कोई जहरीली दवा दे दीजिये जो मैं जाकर उस बुढ़िया को पिला दूँ नहीं तो मैं अब ससुराल नहीं जाती !
*बेटी का दुःख समझते हुए पिता ने कहा – “बेटी, अगर तुम अपनी सास को ज़हर खिला कर मार दोगी तो तुम्हें पुलिस पकड़ ले जाएगी और साथ ही मुझे भी क्योंकि वो ज़हर मैं तुम्हें दूंगा. इसलिए ऐसा करना ठीक नहीं होगा.”!
लेकिन प्रीती जिद पर अड़ गई – “आपको मुझे ज़हर देना ही होगा ….
*अब मैं किसी भी कीमत पर उसका मुँह देखना नहीं चाहती !”
कुछ सोचकर पिता बोले – “ठीक है जैसी तुम्हारी मर्जी। लेकिन मैं तुम्हें जेल जाते हुए भी नहीं देख सकता इसलिए जैसे मैं कहूँ वैसे तुम्हें करना होगा ! मंजूर हो तो बोलो ?”
“क्या करना होगा ?” प्रीती ने पूछा.
पिता ने एक पुडिया में ज़हर का पाउडर बाँधकर उसके हाथ में देते हुए कहा – “तुम्हें इस पुडिया में से सिर्फ एक चुटकी ज़हर रोज़ अपनी सास के भोजन में मिलाना है।
कम मात्रा होने से वह एकदम से नहीं मरेगी बल्कि धीरे-धीरे आंतरिक रूप से कमजोर होकर 5 से 6 महीनों में मर जाएगी. लोग समझेंगे कि वह स्वाभाविक मौत मर गई.”
पिता ने आगे कहा -“लेकिन तुम्हें बेहद सावधान रहना होगा ताकि तुम्हारे पति को बिलकुल भी शक न होने पाए वरना हम दोनों को जेल जाना पड़ेगा ! इसके लिए तुम आज के बाद अपनी सास से बिलकुल भी झगडा नहीं करोगी बल्कि उसकी सेवा करोगी।
यदि वह तुम पर कोई टीका टिप्पणी करती है तो तुम चुपचाप सुन लोगी, बिलकुल भी प्रत्युत्तर नहीं दोगी ! क्या तुम ये सब कर पाओगी ?” प्रीती ने सोचा, छ: महीनों की ही तो बात है, फिर तो छुटकारा मिल ही जाएगा. उसने पिता की बात मान ली और ज़हर की पुडिया लेकर ससुराल चली आई.
ससुराल आते ही अगले ही दिन से प्रीती ने सास के भोजन में एक चुटकी ज़हर रोजाना मिलाना शुरू कर दिया और साथ ही उसके प्रति अपना बर्ताव भी बदल लिया! अब वह सास के किसी भी ताने का जवाब नहीं देती बल्कि क्रोध को पीकर मुस्कुराते हुए सुन लेती।
रोज़ उसके पैर दबाती और उसकी हर बात का ख़याल रखती।
सास से पूछ-पूछ कर उसकी पसंद का खाना बनाती, उसकी हर आज्ञा का पालन करती।
कुछ हफ्ते बीते तो सास के स्वभाव में भी परिवर्तन आना शुरू हो गया ! बहू की ओर से अपने तानों का प्रत्युत्तर न पाकर उसके ताने अब कम हो चले थे बल्कि वह कभी कभी बहू की सेवा के बदले आशीष भी देने लगी थी।
धीरे-धीरे चार महीने बीत गए! प्रीती नियमित रूप से सास को रोज़ एक चुटकी ज़हर देती आ रही थी।
किन्तु उस घर का माहौल अब एकदम से बदल चुका था. सास बहू का झगडा पुरानी बात हो चुकी थी. पहले जो सास उसे गालियाँ देते नहीं थकती थी, अब वही आस-पड़ोस वालों के आगे उसकी तारीफों के पुल बाँधने लगी थी।
बहू को साथ बिठाकर खाना खिलाती और सोने से पहले भी जब तक बहू से चार प्यार भरी बातें न कर ले, उसे नींद नही आती थी।
पांचवा महीना बीतेने को लगा कि उसकी सास उसे बिलकुल अपनी बेटी की तरह मानने लगी थी उसे भी अपनी सास में माँ की छवि नज़र आने लगी थी।
जब वह सोचती कि उसके दिए ज़हर से उसकी सास कुछ ही दिनों में मर जाएगी तो वह परेशान हो जाती थी।
इसी ऊहापोह में एक दिन वह अपने पिता के घर दोबारा जा पहुंची और बोली – “पिताजी, मुझे उस ज़हर के असर को ख़त्म करने की दवा दीजिये क्योंकि अब मैं अपनी सास को मारना नहीं चाहती … !
वो बहुत अच्छी हैं और अब मैं उन्हें अपनी माँ की तरह चाहने लगी हूँ!”
पिता बोले – मैंने तो तुम्हें ज़हर के नाम पर हाजमे का चूर्ण दिया था !!!”
विशेष ,,,,,,, अपने बच्चों के सम्बन्ध में सकारात्मक सोच सोचें ! ये विषय नकारात्मक सोच के नहीं है ! एक बेटी का पिता बनाने से पूर्व अपनी सोच को सकारात्मक बनाने का अभ्यास करें !"बेटी को सही रास्ता दिखाकर , माँ बाप का सही फर्ज अदा करें"
*जय-जय श्री राधेकृष्णा*🙏🌸🌸