Jay Ranjeet Hanuman
Narendra Neka Dec 17, 2016 Jay ranjeet
🙏सुप्रभात सादर प्रणाम जी 🚩 🚩जय श्री राधेकृष्णा राधे राधे जी 🚩
Jay Shri Hanuman Jii Jay Shri Shanidev ji Pawan Putra Hanuman Jii Or Surya Putra Shani Dev Maharaj ki kripa Aap aur Aapke pariwar pr hamesha bani Rahe Jii shubh prabhat Jii
*पण्डित चंद्रशेखर आजाद शहादत दिवस विशेष...... 🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸 *भारत अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद का कर्जदार हैं जिन्होंने आज के दिन खुद को गोली मारकर अपने प्राण देश के लिए त्याग दिए थे। वतन के लिए सर्वस्य न्यौछावर करने वाले व भारत को अंग्रेजों की गुलाम बेडियों से मुक्त कराने में अपना पूरा जीवन खपाने वाले क्रान्तिकारियों की शहादत को याद रखना हर भारतवासी का कर्तव्य है। हिंदुस्तान की खुशहाली के लिए 27 फरवरी को आज ही के दिन चन्द्रशेखर आजाद ने अंग्रेजों के साथ लड़ते-लड़ते अपने प्राण की आहूति दे दी थी। ऐसे बलिदानियों को भूलने का मतलब अपराध करना है। इसी को ध्यान में रखते हुए दो साल पहले केंद्र सरकार ने ‘याद करो कुर्बानी’ नाम के एक कार्यक्रम की शुरुआत की थी, जिसका उद्देश्य उन शहीदों को याद करना और उन्हें श्रद्धांजलि देना है जिन्हें या तो भुला दिया गया है अथवा जिनके बारे में लोगों को पता ही नहीं है। ऐसे कार्यक्रमों का स्वागत करना चाहिए, लेकिन ज्यादातर कागजों में ही किए जाते हैं ऐसे प्रोग्राम! चंद्रशेखर आजाद की कुर्बानी का देश कभी कर्ज नहीं भूला सकता है। देश की आजादी में बलिदान देने वाले लोगों के परिजन आज दर-दर की ठोकरे खा रहे हैं। आजाद के वंशज पंडित सुजीत आजाद कहते हैं कि उनका परिवार हाशिए पर है। कोई नहीं पूछता। पंडित सुजीत बताते हैं कि किसी सरकारी कार्यालय में अपना कोई काम कराने जाते हैं तो अपना परिचय जब शहीद चंद्रशेखर आजाद से बताते हैं तो बाबू लोग उपहास उड़ाते हैं। पंडित आजाद ने देश को सब कुछ दे दिया। वह दिन कोई नहीं भूल सकता जिस दिन आजाद ने लाला लाजपतराय की मौत का बदला लेने के लिए उस अंग्रेज अधिकारी को मारने का प्लान बनाया था। 17 दिसम्बर, 1928 को चन्द्रशेखर आजाद, भगतसिंह और राजगुरु ने संध्या के समय लाहौर में पुलिस अधीक्षक के दफ्तर को जा घेरा। जैसे ही जेपी सांडर्स अपने अंगरक्षक के साथ मोटर साइकिल पर बैठकर निकला, पहली गोली राजगुरु ने दाग दी, जो साडंर्स के मस्तक पर लगी और वह मोटर साइकिल से नीचे गिर पड़ा। भगतसिंह ने आगे बढ़कर चार-छह गोलियां और दागकर उसे बिल्कुल ठंडा कर दिया। जब सांडर्स के अंगरक्षक ने पीछा किया तो चन्द्रशेखर आजाद ने अपनी गोली से उसे ठेर कर दिया। इसके बाद पुरे लाहौर में जगह-जगह परचे चिपका दिए गए कि लाला लाजपतराय की मृत्यु का बदला आजाद ने सांडर्स को मारकर ले लियाहै। समस्त भारत में क्रान्तिकारियों के इस कदम को सराहा गया। इस घटना के बाद समस्त क्रान्तिकारियों में आजाद का नाम गूंजने लगा। अंग्रेजों ने आजाद को जिंदा या मुर्दा पकड़ने के लिए पांच हजार का ईनाम घोषित कर दिया। अंग्रेज आजाद को पकड़ने के लिए पागल हो गए थे। लेकिन अंत तक उनके हत्थे नहीं आए। बलिदानियों के परिवारजनों के अलावा देशवासियों के भीतर भी पीड़ा है कि देश की आजादी में भाग लेने वाले कई लोगों का भूला दिया है। उनका स्मरण होना चाहिए, उन्हें याद किया जाना चाहिए। एक सच्चाई शीशे की तरह साफ है और वह यह है कि कुछ मुठ्ठी भर नाम छोड़कर हजारों स्वतंत्रता सेनानियों को इतिहास के पन्नों में जगह नहीं मिली। यहां हमारा आशय उन आंदोलनकारियों से बिल्कुल नहीं है जो महात्मा गांधी और उनके साथियों के नेतृत्व में देश के लिए लड़ मिटने को तैयार होकर निकले थे। अविभाजित भारत में आजादी के हजारों ऐसे दीवाने हुए जिन्होंने कांग्रेस के साथ या उससे अलग आजादी का बिगुल बजाया। चंद्रशेखर आजाद ने उस वक्त युवाओं की एक फौज अंग्रेजों से लड़ने के लिए तैयार की थी। लेकिन कुछ भारतवासी उस समय उनका विरोध कर रहे थे। ये वह लोग थे जिन्हे अंग्रेजों की गुलामी पसंद थी। सोच बदलने वाली सियासत उस वक्त भी हावी थी। चंद्रशेखर आजाद भी उस वक्त सियासत के शिकार हुए थे। उनकी लोकप्रियता कुछ लोगों को खटक रही थी। आजाद को ठिकाने लगाने के लिए एक मुखबिर ने पुलिस को सूचना दी कि चन्द्रशेखर आजाद इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में अपने एक साथी के साथ बैठे हुए हैं। वह 27 फरवरी, 1931 का दिन था। चन्द्रशेखर आजाद अपने साथी सुखदेव राज के साथ बैठकर विचार-विमर्श कर रहे थे। मुखबिर की सूचना पर पुलिस अधीक्षक नाटबाबर ने आजाद को इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में चारो ओर से घेर लिया। तुम कौन हो कहने के साथ ही उत्तर की प्रतीक्षा किए बिना नाटबाबर ने अपनी गोली आजाद पर छोड़ दी। नाटबाबर की गोली चन्द्रशेखर आजाद की टांग में जा घूसी। लेकिन वीर योद्वा आजाद ने हिम्मत दिखाते हुए घिसटकर एक जामुन के वृक्ष की ओट लेकर अपनी गोली दूसरे वृक्ष की ओट में छिपे हुए नाटबाबर के ऊपर फायर किया, आजाद का निशाना सही लगा और उनकी गोली ने नाटबाबर की कलाई तोड़ दी। एक घनी झाड़ी के पीछे सी.आई.डी. इंस्पेक्टर विश्वेश्वर सिंह छिपा हुआ था, उसने स्वयं को सुरक्षित समझकर आजाद को एक गाली दे दी। गाली को सुनकर आजाद को क्रोध आया। जिस दिशा से गाली की आवाज आई थी, उस दिशा में आजाद ने अपनी गोली छोड़ दी। निशाना इतना सही लगा कि आजाद की गोली ने विश्वेश्वरसिंह का जबड़ा तोड़ दिया। दोनों ओर से गोलीबारी हो रही थी। इसी बीच आजाद ने अपने साथी सुखदेवराज को वहां से भगा दिया। पुलिस की कई गोलियां आजाद के शरीर में समा गईं। उनके माउजर में केवल एक अंतिम गोली बची थी। उन्होंने सोचा कि यदि मैं यह गोली भी चला दूंगा तो जीवित गिरफ्तार होने का भय है। अपनी कनपटी से माउजर की नली लगाकर उन्होंने आखिरी गोली स्वयं पर ही चला दी। गोली घातक सिद्ध हुई और उनका प्राणांत हो गया। इस घटना में चंद्रशेखर आजाद की मृत्यु हो गई। चंद्रशेखर आजाद के शहीद होने का समाचार जवाहरलाल नेहरू की पत्नी कमला नेहरू को प्राप्त हुआ। उन्होंने ही कांग्रेसी नेताओं और देशभक्तों को यह समाचार बताया। श्मशान घाट से आजाद की अस्थियां लेकर एक जुलूस निकला। इलाहाबाद की मुख्य सड़कें अवरुद्ध हो गयीं, ऐसा लग रहा था मानो सारा देश अपने इस सपूत को अंतिम विदाई देने के लिए उमड़ पड़ा है। इसके साथ ही एक युग के अध्याय का अंत हो गया। जंगे आजादी के महानायक पण्डित चन्द्रशेखर आजाद जी को सत् सत् नमन् 🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸
JAI JAI SHRI RADE SHAM JAI HO
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे मधु मंगल दास *एक बार संत सूरदास को किसी ने भजन करने के लिए आमंत्रित किया। भजनोपरांत उन्हे अपने घर तक पहुँचाने का ध्यान उसे नहीं रहा ।सूरदासजी ने भी उसे तकलीफ नहीं देना चाहा और खुद हाथ मे लाठी लेकर गोविंद –गोविंद करते हुये अंधेरी रात मे पैदल घर की ओर निकल पड़े। रास्ते मे एक कुआं पड़ता था। वे लाठी से टटोलते –टटोलते भगवान का नाम लेते हुये बढ़ रहे थे और उनके पांव और कुएं के बीच मात्र कुछ दूरी रह गई थी कि उन्हे लगा कि किसी ने उनकी लाठी पकड़ ली है, तब उन्होने पूछा ,-तुम कौन हो? उत्तर मिला – बाबा, मैं एक बालक हूँ। मैं भी आपका भजन सुन कर लौट रहा हूँ। आपका भजन सुनना मुझे बहुत प्रिय लगता है। देखा कि आप गलत रास्ते जा रहे हैं ,इस लिए मैं इधर आ गया । चलिये ,आपको घर तक छोड़ दूँ।‘ तुम्हारा नाम क्या है बेटा ?-सुरदास ने पूछा। ‘बाबा ,अभी तक मेरी माँ ने मेरा नाम नहीं रखा है।‘’तब मैं तुम्हें किस नाम से पुकारूँ ?””कोई भी नाम चलेगा बाबा॥ “सूरदास ने रास्ते मे और कई सवाल पूछे। उन्हे ऐसा लगा कि हो न हो ,यह कन्हैया है, वे समझ गए कि आज गोपाल खुद मेरे पास आए हैं। क्यो नहीं मैं इनका हाथ पकड़ लूँ। “यह सोंच उन्होने अपना हाथ उस लकड़ी पर कृष्ण की ओर बढ़ाने लगे। भगवान कृष्ण उनकी यह चाल समझ गए।सूरदास का हाथ धीरे –धीरे आगे बढ़ रहा था। जब केवल चार अंगुल का अंतर रह गया तब श्री कृष्ण लाठी को छोड़ दूर चले गए। जैसे उन्होने लाठी छोड़ी, सूरदास विह्वल हो गए ,आंखो के अश्रुधारा बह निकली। बोले -मैं अंधा हूँ ,ऐसे अंधे की लाठी छोड़ कर चले जाना क्या कन्हैया तुम्हारी बहादुरी है और उनके श्रीमुख से वेदना के यह स्वर निकल पड़े–* *“बांह छुड़ाके जात हैं, निर्बल जानी मोही।* *हृदय छोड़के जाय तो मैं मर्द बखानू तोही* *मुझे निर्बल जानकार मेरा हाथ छुड़ा कर जाते हो, पर मेरे हृदय से जाओ तो मैं तुम्हें मर्द कहूँ। भगवान कृष्ण ने कहा–बाबा, अगर मैं आप ऐसे भक्तो के हृदय से चला जाऊं तो फिर मैं कहाँ रहूँ ?* हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे
Jsr
जय श्री मंगलमुर्ती हनुमंतेय नमः जय सीताराम शुभ प्रभात स्नेह वंदन धन्यवाद 🌹🙏🙏🙏
कामेंट्स
Narendra Neka Dec 17, 2016
Jay ranjeet