पीएचडी ज्ञान सत्संग विचार, पवित्र शास्त्रों से प्रमाणित....... https://youtu.be/UWLnJYmx70Q
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#दादूदयाल #दादूवाणी #मनकाअंग #Daduji #महंतबजरंगदासस्वामी *मन मुखी व्यक्ति है कौन होते?* ७) किया मन का भावता, मेटी आज्ञाकार। क्या ले मुख दिखलाइये, दादू उस भरतार॥मन का अंग-३०॥ To watch on YouTube, click on the link below~ https://youtu.be/Ed-vhKVgDZc ——————————————— अन्य प्रवचन वीडीयो, वाणी के दूसरे अंग को सुनने के लिए हमारे YouTube channel पर जाए- https://www.youtube.com/channel/UCNP3UfP8UfJmn59SVS0ELOQ
🚩श्रीगणेशाय नम:🚩 श्री रामचरित मानस पाठ -रामायण संदेश (दिवस -९) गतांक से आगे। गोस्वामी तुलसीदास जी रामचरितमानस का लेखन प्रारंभ करते हुए बालकाण्ड के प्रथम सोपान के तुलसीदासजी की दीनता और राम भक्तिमयी कविता की महिमा घटनाक्रम में तुलसीदास जी ने भगवान् श्रीराम की उदारता ,दयालुता तथा भक्त वत्सलता का वर्णन करते हुए अन्य देवों से उन्हें महान कहा है और उन्हीं की उपासना में अपनी आस्था और समर्पण व्यक्त किया है। चौपाई: सब गुन रहित कुकबि कृत बानी। राम नाम जस अंकित जानी॥ सादर कहहिं सुनहिं बुध ताही। मधुकर सरिस संत गुनग्राही॥ भावार्थ:-इसके विपरीत, कुकवि की रची हुई सब गुणों से रहित कविता को भी, राम के नाम एवं यश से अंकित जानकर, बुद्धिमान लोग आदरपूर्वक कहते और सुनते हैं, क्योंकि संतजन भौंरे की भाँति गुण ही को ग्रहण करने वाले होते हैं॥ जदपि कबित रस एकउ नाहीं। राम प्रताप प्रगट एहि माहीं॥ सोइ भरोस मोरें मन आवा। केहिं न सुसंग बड़प्पनु पावा॥ भावार्थ:-यद्यपि मेरी इस रचना में कविता का एक भी रस नहीं है, तथापि इसमें श्री रामजी का प्रताप प्रकट है। मेरे मन में यही एक भरोसा है। भले संग से भला, किसने बड़प्पन नहीं पाया?॥ धूमउ तजइ सहज करुआई। अगरु प्रसंग सुगंध बसाई॥ भनिति भदेस बस्तु भलि बरनी। राम कथा जग मंगल करनी॥ भावार्थ:-धुआँ भी अगर के संग से सुगंधित होकर अपने स्वाभाविक कड़ुवेपन को छोड़ देता है। मेरी कविता अवश्य भद्दी है, परन्तु इसमें जगत का कल्याण करने वाली रामकथा रूपी उत्तम वस्तु का वर्णन किया गया है। (इससे यह भी अच्छी ही समझी जाएगी।)॥ छंद : मंगल करनि कलिमल हरनि तुलसी कथा रघुनाथ की। गति कूर कबिता सरित की ज्यों सरित पावन पाथ की॥ प्रभु सुजस संगति भनिति भलि होइहि सुजन मन भावनी भव अंग भूति मसान की सुमिरत सुहावनि पावनी॥ भावार्थ:-तुलसीदासजी कहते हैं कि श्री रघुनाथजी की कथा कल्याण करने वाली और कलियुग के पापों को हरने वाली है। मेरी इस भद्दी कविता रूपी नदी की चाल पवित्र जल वाली नदी (गंगाजी) की चाल की भाँति टेढ़ी है। प्रभु श्री रघुनाथजी के सुंदर यश के संग से यह कविता सुंदर तथा सज्जनों के मन को भाने वाली हो जाएगी। श्मशान की अपवित्र राख भी श्री महादेवजी के अंग के संग से सुहावनी लगती है और स्मरण करते ही पवित्र करने वाली होती है। दोहाः प्रिय लागिहि अति सबहि मम भनिति राम जस संग। दारु बिचारु कि करइ कोउ बंदिअ मलय प्रसंग॥ भावार्थ:-श्री रामजी के यश के संग से मेरी कविता सभी को अत्यन्त प्रिय लगेगी। जैसे मलय पर्वत के संग से काष्ठमात्र (चंदन बनकर) वंदनीय हो जाता है, फिर क्या कोई काठ (की तुच्छता) का विचार करता है?॥ स्याम सुरभि पय बिसद अति गुनद करहिं सब पान। गिरा ग्राम्य सिय राम जस गावहिं सुनहिं सुजान ॥ भावार्थ:-श्यामा गो काली होने पर भी उसका दूध उज्ज्वल और बहुत गुणकारी होता है। यही समझकर सब लोग उसे पीते हैं। इसी तरह गँवारू भाषा में होने पर भी श्री सीतारामजी के यश को बुद्धिमान लोग बड़े चाव से गाते और सुनते हैं॥ संदेश -बुद्धिमान लोग कहते हैं कि सुकवि की कविता भी उत्पन्न और कहीं होती है और शोभा अन्यत्र कहीं पाती है (अर्थात कवि की वाणी से उत्पन्न हुई कविता वहाँ शोभा पाती है, जहाँ उसका विचार, प्रचार तथा उसमें कथित आदर्श का ग्रहण और अनुसरण होता है)। कवि के स्मरण करते ही उसकी भक्ति के कारण सरस्वतीजी ब्रह्मलोक को छोड़कर दौड़ी आती हैं॥ शेष भाग अगले अंक/लेख में....... 🚩जय सियाराम🚩