*श्रेष्ठता और निकृष्टता का आधार : विचार* 💫🌲💫🌲💫🌲💫🌲💫🌲💫 विचार मनुष्य को अति श्रेष्ठ, ऊंच भी बना देते हैं, इतना ऊंच कि वह भगवान तक भी पहुंच जाता है, जहां बड़े-बड़े वैज्ञानिक आदि भी नहीं पहुंच सके। दूसरी ओर, विचार ही मनुष्य को अति निकृष्ट, नीच भी बना देते हैं। इतना नीच कि असुरों का भी अधिपति, जो दूसरों की जिंदगी से सुख चैन छीनने में आनंदित होता है। कहते हैं, एक बार देवता, असुर और मनुष्य तीनों मिलकर प्रजापिता ब्रह्मा के पास गए और बोले महाराज! हमारे लिए कुछ उपदेश कीजिए। ब्रह्माजी बोले "दाह, दाह"। दाह माना दो। जो देवता थे उन्होंने समझा कि दो अर्थात महादानी बन, अपना भी सब त्याग करके, दूसरों को दे दो। जो मनुष्य थे उन्होंने सोचा, सिर्फ खा पीकर खत्म नहीं करो, कुछ दान पुण्य भी करो। तो दूसरों के कल्याण के लिए स्कूल, धर्मशाला, अस्पताल खोलने में मदद करने लगे। लेकिन बोर्ड पर नाम लिखवाना नहीं भूले क्योंकि उन्हें बदले में नाम और महिमा तो चाहिए। जो असुर थे, उन्होंने समझा, दो अर्थात दूसरों को दुख दो तंग करो। लोगों को डरा धमका कर चलो, अपने काबू में करने की कोशिश करो। दाह, अर्थात दूसरों को कष्ट दो। यह कहानियां बताती हैं कि मनुष्य के मन में बड़े ऊंचे उपकार करने वाले भी विचार होते हैं और स्वार्थ पूरित राक्षसी विचार भी होते हैं। बाबा ने हमें कितने श्रेष्ठ विचार दिए। बाप समान बनो। पहले बाबा कहते थे, आप सामान बनाओ। फिर कहने लगे बच्चे! तुम भी बाप समान बनो और दूसरों को भी बाप सामान बनाओ। कितना ऊंचा लक्ष्य दिया बाबा ने! लोग सोचते हैं, हम कहां और भगवान कहां! बड़े-बड़े संत महात्मा, ऋषि मुनि भी भगवान समान नहीं बन सके तो हम कहां ठहरते हैं? लेकिन बाबा ने कहा, तुम मेरे बच्चे हो, जरूर मेरे जैसा बन सकते हो। जैसा बाप वैसा बच्चा। बस इसके लिए तुम्हें पुरुषार्थ करना होगा। शुक्रिया बाबा☝️🙏 ओम शांति मेरे मीठे प्यारे बाबा 💫🌲💫🌲💫🌲💫🌲💫🌲💫