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*शुभ रात्रि वंदन* *जय माता दी* *बहुत सुन्दर माता गीत* 🌷💖👣🙏👣💖🌷
सुख और ऐश्वर्यदायक हैं देवी स्कंदमाता, इस श्लोक—स्तुति से प्राप्त होती है मां की कृपा स्कंदमाता की पूजा से हर इच्छा पूरी होती है। मां स्कंदमाता को जहां अग्नि देवी के रूप में भी पूजा जाता है वहीं वे ममता की भी प्रतीक हैं। देवी स्कंदमाता की चार भुजा हैं। मां के दो हाथों में कमल पुष्प हैं और एक हाथ में बालरूप में भगवान कार्तिकेय हैं। मां का एक हाथ वरमुद्रा में है। नवरात्रि के पांचवें दिन मां दुर्गा के स्कंदमाता स्वरूप की पूजा की जाती है। स्कंद का मतलब होता है शिव—पार्वती के पुत्र भगवान कार्तिकेय अथवा मुरुगन। इस प्रकार मां स्कंदमाता का शाब्दिक अर्थ है — स्कंद की माता। मां स्कंदमाता की पूजा से हर इच्छा पूरी होती है। मां स्कंदमाता को जहां अग्नि देवी के रूप में भी पूजा जाता है वहीं वे ममता की भी प्रतीक हैं। देवी स्कंदमाता की चार भुजा हैं। मां के दो हाथों में कमल पुष्प हैं और एक हाथ में बालरूप में भगवान कार्तिकेय हैं। मां का एक हाथ वरमुद्रा में है। स्कंदमाता सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी हैं। ज्योतिषाचार्य पंडित नरेंद्र नागर के अनुसार यही कारण है कि इनका प्रभामंडल सूर्य के समान अलौकिक तेजोमय दिखाई देता है। मां स्कंदमाता कमल पर विराजमान हैं। स्कंदमाता की विश्वासपूर्वक पूजा करने पर मोक्ष मिल जाता है। इनकी उपासना सुख, ऐश्वर्यदायक है। श्लोक—स्तुति 1. सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया | शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी || 2. या देवी सर्वभूतेषु माँ स्कंदमाता रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।। हिंदी भावार्थ : हे मां! आप सर्वत्र विराजमान हैं. स्कंदमाता के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बारंबार प्रणाम है या मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूं।
🍁JAI MAA SANTOSHI🍁
नवरात्रि के चौथे दिन मां कूष्मांडा की पूजा की जाती है। यह मां दुर्गा का चौथा स्वरूप हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, देवी कूष्मांडा ने ही इस सृष्टि की रचना की थी। इसी के चलते इन्हें सृष्टि की आदिस्वरूपा और आदिशक्ति भी कहा जाता है। मान्यता है कि शुरुआत में हर ओर अंधेरा व्याप्त था। तब देवी ने ब्रह्मांड की रचना अपनी मंद हंसी से की थी। अष्टभुजा देवी अपने हाथों में धनुष, बाण, कमल-पुष्प, कमंडल, जप माला, चक्र, गदा और अमृत से भरपूर कलश रखती हैं। आइए पढ़ते हैं मां कूष्मांडा की पूजन विधि, मंत्र, आरती और व्रत कथा। देवी कूष्मांडा के मंत्र: या देवी सर्वभूतेषु मां कूष्मांडा रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।। ध्यान मंत्र: वन्दे वांछित कामर्थेचन्द्रार्घकृतशेखराम्। सिंहरूढाअष्टभुजा कुष्माण्डायशस्वनीम्॥ आज विनायक चतुर्थी पर इस तरह करें गणेश जी की पूजा सुरासम्पूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च। दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे॥ देवी कूष्मांडा की आरती: कूष्मांडा जय जग सुखदानी। मुझ पर दया करो महारानी॥ पिगंला ज्वालामुखी निराली। शाकंबरी मां भोली भाली॥ लाखों नाम निराले तेरे । भक्त कई मतवाले तेरे॥ भीमा पर्वत पर है डेरा। स्वीकारो प्रणाम ये मेरा॥ सबकी सुनती हो जगदम्बे।
भजन के पाॅइण्ट हम जो भी, जितना भजन करते हैं, उसके पाॅइण्ट इकट्ठे होते रहते हैं, जैसे क्रैडिट कार्ड में होते हैं । भजन का फल भजन के स्तर में वृद्धि है फिर भी हम भजन के बल पर कभी अपनी लौकिक कामनाओं की भी पूर्ति चाहते हैं, कामनाऐं पूर्ण होती भी, नहीं भी होती। ये निर्भर करता है कि हमारे कितने पाॅइण्ट इकट्ठे हुए हैं । माना हमारे चार हजार पाॅइण्ट हैं, और कामना तीन हजार की हुयी तो पूरी होगी, पाँच हजार पाॅइण्ट की हुयी तो नहीं होगी। साथ ही यदि कामना पूर्ण हुयी तो तीन हजार पाॅइण्ट कम हो जाऐंगे और भजन वृद्धि रुकी रहेगी। इसलिए कामना हेतु अपने नियमित भजन से अलग भजन कर लेना चाहिये। इससे नियमित भजन से भजन वृद्धि नहीं रुकेगी। वैसे कामना-पूर्ति की बजाय कामना-नाश पर जोर देना चाहिए हमें । समस्त वैष्णव जन को राधा दासी का प्रणाम जय श्री राधे ।। जय निताई